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एस धम्मो सनंतनो
दर्द भगवान के हाथ का हथौड़ा है शायद यह बात सच है कि आदमी दर्द में विकसित होता
खूबसूरत बनता और बढ़ता है
इसलिए जब मैं कहता हूं, संसार में दुख है, तो तुम्हें कोई संसार - विरोधी बात नहीं कह रहा हूं। तुम्हें केवल संसार का स्वभाव समझा रहा हूं। ऐसा है । और इस दर्द का भी तुम अगर थोड़ा समझपूर्वक उपयोग करो तो यही सीढ़ियां बन जाए। इसी की चोटों से तुम्हारे भीतर छिपी हुई मूर्ति प्रगट होगी। तुम्हारे भीतर छिपा चिन्मय इसी से प्रगट होगा। यही आग जलाएगी, और जलाएगी, और जलाएगी, और तुम्हारा स्वर्ण निखरकर कुंदन बनेगा ।
इसलिए दर्द तो है, दुख तो है, पीड़ा तो है, मगर पीड़ा निखारती है, मांजती है, ' सजाती है, संवारती है। इसलिए मैं तुम्हें भगोड़ा बनने को नहीं कहता। संसार में दुख है, ऐसा सुनकर कुछ लोग भगोड़े बन जाते हैं, वे कहते हैं—छोड़ो संसार । भागे ! लेकिन तुम समझे ही नहीं । भागोगे कहां ? संसरण यानी संसार । भागे तो संसार । कहीं और जाने की सोची तो संसार ।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, सब छोड़ दें घर-द्वार, हिमालय चले जाएं। यह संसार। अब इन्हें हिमालय में सुख दिखायी पड़ता है। पहले दिखायी पड़ता था कि धन होगा तो सुख होगा, पद होगा तो सुख होगा, प्रतिष्ठा होगी तो सुख होगा । अब सोचते हैं, हिमालय में सुख है, हिमालय की गुफा में सुख है। संसार ने नया आश्वासन दे दिया, संसार ने दौड़ने का नया सूत्र दे दिया - हिमालय की तरफ दौड़ो । फिर एक गुफा में बैठे-बैठे लगेगा कि नहीं, यहां तो नहीं मिलता, थोड़े और ऊपर जाओ, थोड़े और ऊपर जाओ, मिलेगा वहां । ऐसा तुम्हारा जो संसरण चलाता रहता है, उसी का नाम, उस सूत्र का नाम संसार है । जब तुमने दौड़ना बंद कर दिया...।
इसलिए मैं कहता हूं, भगोड़े मत बनना, भगोड़ा संन्यासी नहीं है, भगोड़ा संसारी है। तुम जहां हो, ठीक हो, वहीं ठीक हो, वहीं जागो। कहां जाना भागकर ! अपने में आना है। अपने में आने के लिए भागना तो जरूरी नहीं है। अपने में आना तो सब भागना छोड़ देना जरूरी है। रुक जाओ, ठहर जाओ। दौड़कर जो मिलता है वह संसार है, रुककर जो मिलता है वह परमात्मा है।
रुको, ठहरो, धीरे-धीरे दौड़ छोड़ो। ऐसे जीने लगो जैसे कहीं जाना नहीं है, कुछ होना नहीं है, कुछ बनना नहीं है। उसी क्षण तुम पाओगे कि तुम बने-बनाए हो, तुम्हें परमात्मा ने पूरा बनाया, तुम्हें वैसा बनाया जैसा तुम होना चाहते हो। लेकिन तुमने कभी अपनी शकल ही नहीं देखी। तुम औरों की शकलों में उलझे रहे । तुमने कभी अपनी गांठ ही नहीं टटोली, तुम दूसरों की गांठें टटोलते रहे। तुमने अपने भीतर की खदान नहीं खोदी, तुम न मालूम कहां-कहां भटके जन्मों-जन्मों में, कितनी तुमने
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