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केवल दी मूर्च्छा-विमुक्त दृष्टि, सत्य को मुक्ति । केवल दी मूर्च्छा-विमुक्त दृष्टि
बुद्ध का दान इतना ही है - मूर्च्छा - विमुक्त दृष्टि । तुम सोए-सोए न जीओ। जागकर जीओ । होश से जीओ । बुद्ध ने कोई प्रार्थना नहीं सिखायी किसी आकाश में बैठे परमात्मा के प्रति । न बुद्ध ने कहा भिखारी बनकर मांगो। न बुद्ध ने कहा याचक बनो, हाथ फैलाओ किसी परमात्मा के सामने । बुद्ध ने तो कहा, अपने भीतर जाओ और परमात्मा मिल जाएगा, तुम परमात्मा हो ।
नहीं किसी याचक की प्रार्थना
कि देवता पूरी करें कामना नहीं किसी संत्रस्त की गुहार कि इंद्र करें रिपु का हनन केवल नमन उनको
उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत
है
जो अरिहंत, जो संत,
भले ही उनका कोई धर्म कोई पंथ
मात्र समर्पण की वर्णमाला
एकमात्र मंत्र
एकमात्र मंत्र सिखाया - समर्पण की वर्णमाला । कैसे तुम अपने अंतस्तल के केंद्र पर अपनी परिधि को समर्पित कर दो। कैसे तुम व्यर्थ को सार्थक पर समर्पित
कर दो। कैसे तुम बाहर को भीतर पर समर्पित कर दो।
मात्र समर्पण की वर्णमाला “एकमात्र मंत्र
और कोई मंत्र नहीं सिखाया बुद्ध ने ।
नहीं किसी याचक की प्रार्थना
कि देवता पूरी करें कामना नहीं किसी संत्रस्त की गुहार कि इंद्र करें रिपु का हनन केवल नमन उनको
जो अरिहंत, जो संत,
भले ही उनका कोई धर्म कोई पंथ
मात्र समर्पण की वर्णमाला
एकमात्र मंत्र
अरिहंत शब्द बौद्धों का बहुमूल्य शब्द है । उसका अर्थ होता है, जिसने अपने शत्रुओं पर विजय पा ली। और शत्रुओं का जो प्रधान है, उसको बुद्ध ने प्रमाद कहा
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