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________________ ध्यान की खेती संतोष की भूमि में पत्नियों का क्या भरोसा कब बीमार हो जाएं! और ऐसे मौके पर जरूर बीमार हो जाएं। कभी बेटी घर आ गयी। कभी बेटे से झगड़ा हो गया। कभी मेहमान आ गए, कभी दुकान पर ग्राहक ज्यादा। कभी काम का बोझ आ गया। कभी कुछ, कभी कुछ। हर बार टालता रहा कि अगली बार, अगली बार। आज अचानक गांव में खबर आयी, एक सन्नाटे की तरह छा गया सारे गांव में कि बुद्ध शरीर छोड़ रहे हैं, गांव के बाहर ही दो शालवृक्षों के नीचे उन्होंने अपनी अंतिम घड़ी चुन ली है। अब वे जा रहे हैं। - तो उसने जल्दी-जल्दी दुकान बंद की-आज उसने फिकर न की कि पत्नी बीमार, कि बेटी घर आयी, कि मेहमान आए, कि दुकान पर ग्राहक, उसने कहा, हटो भी! अब जाने दो, बहुत हो गया, तीस साल मैं टालता रहा। अब अगर टालूंगा तो फिर, फिर कब? मुझे कुछ पूछना है। वह भागा। जब तक वह पहुंचा तब तक बुद्ध ने आंखें बंद कर लीं। वह तो लेट भी गए हैं। सुभद्र जोर-जोर से रोने लगा, उसने कहा कि मुझे पूछने दो। मैं तीस साल से तड़फ रहा हूं। आनंद ने उसे बहुत समझाया कि पागल, तीस साल तूने स्थगित किया, हमने तो स्थगित नहीं किया! अब वे विश्राम में जा रहे हैं, अब वे अपनी देह छोड़ रहे हैं, अब उनको लौटाना ठीक नहीं, अशोभन है। हमने उन्हें काफी बयालीस साल में पीड़ा दी है, हमने बहुत पूछा, हमने न मालूम क्या-क्या पूछा, नहीं पूछना था वह भी पूछा, उसके भी उत्तर उनसे चाहे हैं; अब नहीं! लेकिन कहते हैं, भगवान ने सुभद्र की और आनंद की बातें सुनकर आंख खोल दी और उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं आनंद, रोको मत, उसे आने दो। अभी मैं जिंदा हूं। नहीं तो यह एक दोष रह जाएगा, यह सुभद्र सदा के लिए मुझे दोषी ठहराएगा कि मैं पूछने गया था और भगवान के द्वार से बिना पूछे आ गया। इसे पूछ लेने दो। तो सुभद्र आकर उनके पास बैठ गया और उसने जो प्रश्न पूछे, वे भी बड़े अजीब हैं। व्यर्थ के प्रश्न पूछे। दार्शनिक प्रश्न पूछे, जिनसे कुंछ व्यावहारिक उपयोग नहीं है। उसने प्रश्न पूछा कि भंते, मुझे तीन प्रश्न पूछने हैं। पहला, क्या आकाश में पद हैं, क्या आकाश में पदचिह्न बनते हैं? दूसरा, क्या बाहर श्रमण हैं? और तीसरा, क्या संस्कार शाश्वत हैं? ____अब इनका कोई मूल्य नहीं है। इनको जान लेने से भी क्या होगा? ये हवाई बातें पूछीं। तुम कभी बुद्धपुरुषों के पास भी जाते हो तो मूढ़तापूर्ण प्रश्न पूछते हो। जिनको तुम बड़ी आध्यात्मिक बातें कहते हो, वे अक्सर मूढ़तापूर्ण बातें हैं। ___मेरे पास कोई आ जाता, वह कहता, भगवान ने संसार बनाया या नहीं? क्या मतलब है! क्या फर्क पड़ेगा! बनाया तो तुम ऐसे ही जीओगे, नहीं बनाया तो तुम ऐसे ही जीओगे। तुम्हारे जीने में कुछ फर्क पड़े, ऐसी बात पूछो। आदमी मरने के 353
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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