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एस धम्मो सनंतनो
बाद बचता या नहीं? क्या फर्क पड़ेगा! अभी तुम जैसे हो, यहीं भीतर डुबकी लगाने की कोई बात पूछो। तो शायद तुम्हें पता चल जाए उसका भी जो बचेगा। पहचान हो जाए। मगर नहीं, इसमें उत्सुकता नहीं, ध्यान में उत्सुकता नहीं, योग में उत्सुकता नहीं, हवाई बातें! एब्स्ट्रेक्ट! जिनका कोई मूल्य नहीं है। __ उस आदमी ने क्या प्रश्न पूछे! भंते, क्या आकाश में पद हैं? बाहर श्रमण हैं? क्या संस्कार शाश्वत हैं?
उसको भी उत्तर भगवान ने दिया। साधारणतः वह इस तरह की बातों के उत्तर नहीं देते थे, लेकिन यह अंतिम जिज्ञासु था और इसे इनकार करना ठीक नहीं था।
ये अंतिम दो सूत्र सुभद्र को उत्तर में दिए गए सूत्र हैं।
आकासे च पदं नत्थि समणो नत्थि बाहिरे। . पपञ्चाभिरता पजा निप्पपञ्चा तथागता।।। आकासे च पदं नत्थि समणो नत्थि बाहिरे। संखारा सस्सता नत्थि नत्थि बुद्धानमिञ्जितं।।
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__ 'आकाश में पथ नहीं होता-कोई पदचिह्न नहीं बनते-बाहर में (बुद्ध-शासन से बाहर) श्रमण नहीं होता। लोग प्रपंच में लगे रहते हैं, लेकिन तथागत प्रपंच रहित हैं।'
'आकाश में पथ नहीं होता-पदचिह्न नहीं बनते-बाहर में श्रमण नहीं होता, संस्कार शाश्वत नहीं होते हैं और बुद्धों का इंगित, अता-पता नहीं होता है।'
बुद्ध ने कहा, आकाश में कोई पदचिह्न नहीं बनते। पूछने वाले ने तो व्यर्थ की बात पूछी थी, पूछने वाले को तो इससे कुछ सार न था, लेकिन बुद्ध ने जो उत्तर दिया, वह बड़ा सार्थक है।
तुम भी बहुत बार प्रश्न पूछते हो जो व्यर्थ होते हैं। जिनसे तुम्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है। इसलिए कई बार तुम्हें ऐसा भी लगता होगा कि मैं जो उत्तर देता हूं, वह शायद ठीक-ठीक तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं है। क्योंकि मैं उत्तर तुम्हें वही देता हूं जिससे तुम्हें कुछ लाभ हो सके। तुम्हें तो क्षमा किया जा सकता है गलत प्रश्न पूछने के लिए, मुझे क्षमा नहीं किया जा सकता गलत उत्तर देने के लिए। तुम कुछ भी पूछो, मैं तुम्हें वही उत्तर देता हूं जिसका कोई परिणाम हो सके। जिससे तुम्हारे जीवन में कोई रूपांतरण हो सके। मैं तुम्हारे गलत प्रश्न से भी कुछ खोज लेता हूं जिसका ठीक उत्तर हो सके।
उसने जो पूछा था, वह व्यर्थ की बात थी। उसका कोई मूल्य नहीं था। लेकिन बुद्ध ने उसमें मूल्य डाल दिया। उन्होंने कहा, आकाश में पथ नहीं होता। और जीवन आकाश जैसा ही है। इसमें कोई पदचिह्न नहीं छूटते हैं। बुद्ध चलते हैं, उनके कोई
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