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________________ एस धम्मो सनंतनो हर्ज नहीं। सत्संग अगर नींद में भी हो, तो भी ठीक। दुष्ट-संग तो जागकर हो, तो भी ठीक नहीं। तीसरा दृश्यः भगवान की इस पृथ्वी पर अंतिम घड़ी। भगवान कुसीनाला के शालवन उप्पवत्तन में अपने भिक्षुओं से अंतिम विदा लेकर लेट गए हैं। दो शालवृक्षों के नीचे उन्होंने अपनी मृत्यु का स्वागत करने का आयोजन किया है। ___ मौत आ रही है। तो बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा, तुम्हें कुछ पूछना हो तो पूछ लो। कुछ कहना हो तो कह लो, अब मैं चला। अब यह देह जाती है। मैं तो चला गया था बयालीस साल पहले ही, देह भर रह गयी थी, अब देह भी जाती है। तो बौद्ध दो शब्दों का उपयोग करते हैं-निर्वाण और महापरिनिर्वाण। निर्वाण तो उस दिन उपलब्ध हो गया जिस दिन बुद्ध को ज्ञान हुआ। फिर महापरिनिर्वाण उस दिन हुआ जिस दिन देह विसर्जित हो गयी। उस दिन वे महाशून्य में खो गए, महाकाश के साथ एक हो गए। आकाश हो गए। तो भिक्षु क्या पूछते? बुद्ध ने इतना तो कहा, वही कहां सुना! कितना तो कहा, वही कहां सुना! पूछने को बचा क्या? जो पूछा था, वह कहा, जो नहीं पूछा, वह भी कह दिया है। बुद्ध ने तो खूब लुटाया है, बयालीस साल सुबह से सांझ तक लुटाते ही रहे। जो कहा है, वह भी समझ में नहीं आया है, अब और पूछने को क्या है! तो भिक्षु तो चुप रह गए। उन्होंने कहा, पूछने को भगवान क्या है? बस आपका आशीष ! ऐसा बुद्ध ने तीन बार पूछा-ऐसी उनकी आदत थी कि शायद किसी को याद पड़ जाए, शायद किसी को खयाल आ जाए, फिर ऐसा न हो कि मैं जा चुका होऊ और मन में एक खटक रह जाए कि पूछना था, नहीं पूछ पाया, अब किससे पूछे ? अब कौन उत्तर देगा? तो बुद्ध ने तीन बार पूछा, तीनों बार भिक्षुओं ने स्वीकृति दी कि हमें कुछ पूछना नहीं। आपने हमें, जितना देना चाहिए, उससे ज्यादा दे दिया। हम उसका उपयोग कर लें, रत्तीभर भी उपयोग कर लें तो पर्याप्त है। तो फिर बुद्ध दो शालवृक्षों के मध्य में, आनंद ने उनकी शय्या तैयार कर दी, उस पर लेट गए। और धीरे-धीरे वह अपनी देह से मुक्त होने लगे। तभी सुभद्र नाम का एक व्यक्ति गांव से भागा हुआ आया। उसे खबर मिली, वह एक दुकानदार था, उसे खबर मिली कि बुद्ध का आखिरी दिन। तो वह घबड़ा गया। तीस साल में बुद्ध अनेक बार उसके गांव से निकले, कहते हैं, करीब तीस बार उसके गांव से निकले-वह गांव उनके मार्ग में पड़ता था। और तीस साल में उसने अनेक बार सोचा कि बुद्ध को सुनने जाना है, लेकिन कभी कोई बाधा आ गयी, कभी कोई बाधा आ गयी। तुम तो जानते हो कितनी बाधाएं आती हैं! कभी पत्नी बीमार हो गयी-अब 352
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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