________________
उठने में ही मनुष्यता
की शुरुआत है
यह बोध भोजन कर लेने के बाद तुम्हारे पास होता है, लेकिन जब भोजन करते हो तब चूक जाता है।
तो प्रसेनजित ने पूछा, मैं क्या करूं? बुद्ध ने कहा, तुमसे शायद न भी हो सके, मैं देखता हूं तुम बहुत जड़ हो गए हो। तो प्रसेनजित के पास उसका अंगरक्षक खड़ा था। अंगरक्षक का नाम था सुदर्शन। तो बुद्ध ने कहा, सुदर्शन, तू अंगरक्षक कैसा ! यह अंग तो सब खराब हुआ जा रहा है ! और तू अंगरक्षक है! तू खाक सेवा कर रहा है अपने सम्राट की ! तू याद रख ! और जब प्रसेनजित भोजन को बैठें, तो बिलकुल सामने खड़ा हो जा। खड़ा ही रह सामने । और याद दिलाता रह कि ध्यान रखो, स्मरण करो, बुद्ध ने क्या कहा था। तू चूकना ही मत, यह नाराज भी होगा, यह तुझे हटाएगा भी, मगर तू हटना ही मत । तू अंगरक्षक है। तू अपना काम पूरा कर। यह बात सुदर्शन को भी जमी कि अंगरक्षक तो है ही । और उसकी आंखों के सामने यह अंग सब खराब हुआ जा रहा है, यह देह नष्ट हुई जा रही है। तो वह खड़ा रहने लगा।
वह बड़ा हिम्मत का आदमी रहा होगा। क्योंकि प्रसेनजित बहुत नाराज होता जब उसे बीच में याद दिलायी जाती। जब वह ज्यादा खाने लगता, वह कहता, याद करो, याद करो, भगवान ने क्या कहा है ? तो वह कहता, बंद कर बकवास ! कहां के भगवान ! फिर सोचेंगे। मगर वह मानता ही नहीं, वह याद दिलाए ही जाता, दिलाए ही जाता। धीरे-धीरे इसका परिणाम होना शुरू हुआ।
रसरी आवत जात है, सिल पर परत निसान पड़ने लगा निशान ।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
थोड़ा-थोड़ा बोध जगने लगा। नाराज भी होता था, फिर क्षमा भी मांग लेता सुदर्शन से कि नहीं, तेरी क्या भूल ! फिर सुदर्शन ने कहा कि देखिए, मुझे भगवान को उत्तर देना पड़ेगा। और वहां से कई दफे खबर आ चुकी है कि सुदर्शन खबर दे ! तो प्रसेनजित और भी डरा ।
तीन महीने भगवान उस नगर में रुके थे । प्रसेनजित जब दुबारा आया, तो वह आदमी ही दूसरा था। उसके चेहरे पर आभा लौट आयी थी। तेजस्विता आ गयी थी। उसने भगवान का बहुत धन्यवाद किया। उसने सुदर्शन का भी बहुत धन्यवाद किया । सुदर्शन के साथ अपनी बेटी का विवाह किया। उसे आधा राज्य दे दिया ।
जब दुबारा वह भगवान के पास आया था रूपांतरित होकर, अत्यंत अनुग्रह से भरा हुआ, तब भगवान ने यह गाथा कही थी—
आरोग्य परमा लाभा संतुट्ठी परमं धनं । विक्सास परमा जति निब्बानं परमं सुखं । ।
23