________________
एस धम्मो सनंतनो
'आरोग्य सबसे बड़ा लाभ है। संतोष सबसे बड़ा धन है। विश्वास सबसे बड़ा बंधु है और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है।'
आरोग्य शब्द बड़ा अदभुत है। अंग्रेजी के हेल्थ शब्द में वह बात नहीं। आरोग्य का अर्थ है, सारे रोगों से मुक्ति। इसमें मन के रोग सम्मिलित हैं। देह के रोग सम्मिलित हैं। इसमें आत्मा के रोग सम्मिलित हैं। आरोग्य शब्द विराट है। तभी तुम कहे जा सकते हो आरोग्य को उपलब्ध हुए, जब तुम्हारी सारी उपाधियां खो जाएं। जब तुम्हारे ऊपर कोई सीमा न रह जाए।
'आरोग्य सबसे बड़ा लाभ है।'
तो बुद्ध तो बार-बार कहते हैं कि मैं तो चिकित्सक हूं, वैद्य हूं, तुम्हें आरोग्य देने आया हूं, सिद्धांत देने नहीं, दर्शनशास्त्र देने नहीं।
आरोग्य परमा लाभा...।
परम लाभ कहा आरोग्य को। तो निश्चित ही यह शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं होगा। मानसिक, आध्यात्मिक सभी तलों पर जब व्यक्ति रोगों से मुक्त हो जाता है। और बड़े से बड़ा रोग है, मूर्छा। बड़े से बड़ा रोग है, बेहोशी।
आरोग्य परमा लाभा संतुट्ठी परमं धनं ।
और जो आरोग्य को उपलब्ध हो जाता है वह संतोष को भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि जहां आरोग्य है, वहां संतोष है। जहां कोई रोग न रहा, वहां कैसा असंतोष। वहां तो छोटे से पर्याप्त मिलने लगता है। थोड़ा सा भोजन और खूब तृप्ति हो जाती है। थोड़ा सा मिल जाए, बहुत मिल जाता है। क्षुद्र में विराट मिलने लगता है।
'संतोष सबसे बड़ा धन। विश्वास सबसे बड़ा बंधु। और निर्वाण सबसे बड़ा सुख।'
निर्वाण का अर्थ होता है, शून्य भाव। पहले रोग मिटते हैं। तो फिर धीरे-धीरे रोगों के सहारे जो अहंकार जीता है वह भी विसर्जित हो जाता है। सभी रोगों का केंद्र है अहंकार। जब सब रोग हट जाते हैं तो धीरे-धीरे अहंकार भी गिर जाता है। जब खंभे न रहे सम्हालने को तो अहंकार का भवन गिर जाता है। उस घड़ी जो अवस्था बनती, उसको बुद्ध निर्वाण कहते हैं। निर्वाण सबसे बड़ा सुख।
आखिरी सूत्र
पविवेकं रसं पीत्वा रसं उपसमस्स च। निद्दरो होति निप्पापो धम्मपीतिरसं पिवं ।।
24