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________________ एस धम्मो सनंतनो बेचारा! मगर यह है क्या बात? कल इसने हटा दिया, मैंने सुना; और आज इस पर कचरा भी फेंक दिया, यह है कैसा आदमी! ___और जब उसने तीसरे दिन फिर बुद्ध को उस दरवाजे पर खड़ा देखा तो वह घबड़ाया। उसने कहा, अब तो वह स्त्री कहीं अंगारा न फेंक दे, या कोई और तरह की चोट न कर दे। वह आया, उसने कहा कि महाशय! आपको समझ नहीं है? मैं तीन दिन से देख रहा हूं। पहले दिन उसने इनकार करके हटा दिया अपमानपूर्वक, आप चुपचाप चले गए, दूसरे दिन कचरा फेंका; आज आप फिर आ गए? कचरा फेंका तब आपको कुछ समझ में नहीं आया कि इससे कुछ मिलने वाला नहीं है? बुद्ध ने कहा, उससे ही तो खयाल आया कि चलो कुछ तो दिया, कचरा दिया! पहले दिन भी तो कुछ दिया था—नाराज हुई थी, वह भी तो कुछ देना है। अन्यथा नाराज होने का भी क्या कारण है! कुछ न कुछ लगाव होगा। नाराज ही सही, जो आज नाराज है, कल शायद न नाराज भी रह जाए। आदमी बदलते हैं। .. और वह ब्राह्मण तो चकित रह गया। उस स्त्री ने दरवाजा खोला, उसने भी चौंककर देखा! उसने कहा, भिक्षु, कल कचरा फेंका, तुम्हें समझ नहीं आया? बुद्ध ने कहा, समझ में आया, इतनी मेहनत की कचरा फेंकने की, तो किसी दिन शायद कुछ मिल ही जाए। उस स्त्री की आंखों में आंसू आ गए। उस दिन वह भोजन ले आयी। तो बुद्ध कहते थे, कोई कुछ न भी दे तो भी धन्यवाद देना। क्योंकि किसी पर हमारा कोई अधिकार तो नहीं है। दिया तो धन्यवाद, नहीं दिया तो धन्यवाद। जो दे उसका भला, जो न दे उसका भला, ऐसी भावदशा चाहिए। 'लोग अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार देते हैं। जो दूसरों के खान-पान को देखकर सहन नहीं कर सकता...।' और उस युवक से कहा कि अगर दूसरों को देते हैं, तो तुझे क्या परेशानी है? किसी को तो दिया! अगर तू दूसरों का खान-पान देखकर सहन नहीं कर सकता कि दूसरे को भोजन मिल गया, तुझे नहीं मिला, दूसरे को वस्त्र मिल गए, तुझे नहीं मिले, तो एक बात तू पक्की समझ कि दिन या रात तुझे कभी भी समाधि उपलब्ध न हो सकेगी। तू कभी समाधान को उपलब्ध न होगा, तेरे जीवन में कभी ध्यान की किरण न उतरेगी। ध्यान की किरण उनके जीवन में उतरती है, जो सब भांति संतुष्ट हैं। जो कहते हैं, जो है, शुभ है। जैसा है, शुभ है। सुख में, दुख में, सफलता-असफलता में, हार-जीत में जो कहते हैं, जो है, ठीक है, शुभ है, उनके जीवन में समाधि फलती है। 'जिसकी ऐसी मनोवृत्ति उच्छिन्न हो गयी है, समूल नष्ट हो गयी है...।' असंतोष की मनोवृत्ति । 'वही दिन या रात कभी भी समाधि को प्राप्त करता है।' 344
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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