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________________ ध्यान की खेती संतोष की भूमि में इस सूत्र में बहुमूल्य बात है । अगर तुम ध्यान को उपलब्ध होना चाहते हो तो संतोष की भूमि तैयार करो। ध्यान की खेती संतोष की भूमि में ही फलती है, लगती । खूब सींचो संतोष से प्राणों को, ताकि असंतोष जड़ से नष्ट हो जाए । है। यस्स च तं समुच्छिन्नं मूलघच्चं समूहतं। आमूल से उखाड़ दो असंतोष को । सवे दिवा वा रत्तिं वा समाधिं अधिगच्छति ।। - फिर दिन और रात न देखेगी समाधि, कभी भी आ जाएगी- - कभी-कभी आ जाएगी, हर कभी आ जाएगी, ध्यान लगने लगेगा। पहले झलकें आएंगी, फिर लहरें आएंगी, एक दिन तुम पाओगे, बाढ़ आ गयी समाधि की - अधिगच्छति — फिर तो आकर तुम्हें ऊपर से पूरा का पूरा घेर लेगी, तुम्हें डुबा देगी। दूसरा दृश्य : एक दिन कुछ उपासक भगवान के चरणों में धर्म-श्रवण के लिए आए। उन्होंने बड़ी प्रार्थना की भगवान से कि आप कुछ कहें, हम दूर से आए हैं । बुद्ध चुप ही रहे। उन्होंने फिर से प्रार्थना की, तो फिर बुद्ध बोले। जब उन्होंने तीन बार प्रार्थना की तो बुद्ध बोले। उनकी प्रार्थना पर अंततः भगवान ने उन्हें उपदेश दिया, लेकिन वे सुने नहीं । । दूर से तो. आए थे, लेकिन दूर से आने का कोई सुनने का संबंध ! शायद दूर से आए थे तो थके-मांदे भी थे। शायद सुनने की क्षमता ही नहीं थी। उनमें से कोई बैठे-बैठे सोने लगा और कोई जम्हाइयां लेने लगा । कोई इधर-उधर देखने लगा । शेष जो सुनते से लगते थे, वे भी सुनते से भर ही लगते थे, उनके भीतर हजार और विचार चल रहे थे। पक्षपात, पूर्वाग्रह, धारणाएं, उनके पर्दे पर पर्दे पड़े थे। उतना ही सुनते थे जितना उनके अनुकूल पड़ रहा था, उतना नहीं सुनते थे जितना अनुकूल नहीं पड़ रहा था। और बुद्धपुरुषों के पास सौ में एकाध ही बात तुम्हारे अनुकूल पड़ती है । बुद्ध कोई पंडित थोड़े ही हैं। पंडित की सौ बातों में से सौ बातें अनुकूल पड़ती हैं। क्योंकि पंडित वही कहता है जो तुम्हारे अनुकूल पड़ता है। पंडित की आकांक्षा तुम्हें प्रसन्न करने की है। तुम्हें रामकथा सुननी है तो रामकथा सुना देता है । तुम्हें सत्यनारायण की कथा सुनना है तो सत्यनारायण की कथा सुना देता है। उसे कुछ लेना-देना नहीं — तुम्हें क्या सुनना है? उसका ध्यान तुम पर है, तुम्हें जो ठीक लगता है, - कह देता है। उसकी नजर तो पैसे पर है, जो तुम दोगे उसे कथा कर देने के बाद । 345
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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