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एस धम्मो सनंतनो
मैं एक घर में मेहमान था एक बार एक गांव में। वहां एक कवयित्री सम्मेलन हो रहा था। अखिल भारतीय कवयित्री-सम्मेलन! तो मेरे मित्र ने मुझे भी कहा, आप भी चलिए। सारे देश की महिला कवयित्रियां इकट्ठी हो रही हैं। मैंने कहा, तुम जाओ, सिर्फ एक बात मुझे बताना, उनमें कोई एकाध सुंदर भी है? उन्होंने कहा, क्यों, आप ऐसा प्रश्न क्यों उठाते हैं? मैंने कहा, तुम जाकर फिर मुझे बताना। __ वह जब रात बारह बजे लौटे, मैं तो सो गया था, मुझे आकर उठाया, उन्होंने कहा कि मैं रातभर रख नहीं सकूँगा इस बात को, मुझे आपने हैरान कर दिया। उनमें एक भी सुंदर नहीं थी। मगर आपने यह प्रश्न क्यों पूछा? मैंने कहा कि प्रश्न मैंने इसलिए पूछा था कि सुंदर स्त्री कुछ और करती नहीं; सौंदर्य काफी है। असुंदर स्त्रियां कुछ करती देखी जाती हैं-समाज-सेविकाएं बन जाएंगी, कवयित्रियां बन जाएंगी, चित्रकार बनेंगी, क्योंकि सौंदर्य की कमी है, कुछ खटक रहा है। जो खटक रहा है, उसे किसी तरह भरना होगा। तो कुछ करके उसे भर लिया जा सकता है। कुछ और पैदा करके वह जो कमी है, वह पूर्ति हो जाएगी। ___ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो कुछ दुनिया में आदमी ने किया है, वह आदमी का है, स्त्रियों ने कुछ खास नहीं किया। और जिस कारण को वे कहते हैं कि क्यों ऐसा हुआ, वह कारण सुनने और समझने जैसा है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि स्त्रियां बच्चे पैदा कर लेती हैं, यह इतना बड़ा कृतित्व है-मां बनना—कि अब और क्या बनाना है! एक मूर्ति बनाने से क्या होगा, एक जिंदा मूर्ति पैदा कर दी। एक चित्र बनाने से क्या होगा, एक जिंदा तस्वीर पैदा कर दी, एक जिंदा चेहरा पैदा कर दिया। जीवित आंखें, चलता-फिरता बच्चा पैदा कर दिया। इससे बड़े सौंदर्य का और क्या जन्म होगा! स्त्रियां तृप्त हैं एक बच्चे को जन्म देकर।
पुरुष बड़ा बेचैन है। स्त्रियों के सामने वह अपने को जरा असहाय पाता है, वह किसी चीज को जन्म नहीं दे सकता। तो उसकी परिपूर्ति करता है-वह एक मूर्ति बनाएगा, एक चित्र बनाएगा, कविता लिखेगा, काव्य रचेगा-कुछ करके वह सृजनात्मक होता है, सिर्फ इसीलिए ताकि स्त्री के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके, वह कह सके, मैंने भी कुछ बनाया है। और धीरे-धीरे उसने इतनी चीजें बना डाली हैं कि स्त्री बेचैनी अनुभव करती है, उसे लगने लगा कि मैं कुछ भी नहीं कर रही हूं, मुझसे कुछ नहीं हो रहा है, पुरुष ने इतना बना डाला! ___ तुम चकित होओगे, जिन कामों में स्त्रियों को ही खोज करनी चाहिए, उनमें भी पुरुष ही खोज करता है। पाकशास्त्र भी पुरुष लिखते हैं, स्त्रियां नहीं लिखतीं। और दुनिया की बड़ी होटलों के जो बड़े से बड़े भोजन बनाने वाले लोग हैं, रसोइए हैं, वे पुरुष हैं, स्त्रियां नहीं हैं।
क्यों? स्त्री तृप्त है। पुरुष अतृप्त है। कुछ बात खटक रही है, कुछ कम-कम है। कुछ खाली जगह है। तो कुछ करके इसे पूरा कर लेना है। कुछ भी करने से पूरा
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