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________________ ध्यान की खेती संतोष की भूमि में वह दुनिया को बताना चाहता था, मेरी ऊंचाई कितनी है! वह यह दिखाना चाहता था कि मेरे शरीर से मुझे मत तौलो। शरीर में क्या रखा है। मेरी असली ऊंचाई देखो, मेरे सिंहासन से देखो। उसने दुनिया का सबसे बड़ा सिंहासन बनवाया था, ताकि उसके ऊपर बैठकर वह दिखला सके। वह चाहता था, सारी दुनिया को जीत लूं, ताकि मैं बता सकूँ कि मेरी ऊंचाई कितनी है। एक दिन वह घड़ी ठीक करना चाहता था-घड़ी जरा ऊंची लगी थी दीवाल पर और उसका हाथ नहीं पहुंच रहा था। तो उसका जो अंगरक्षक था, उसने कहा, रुकिए महानुभाव, मैं आपसे ऊंचा हूं, मैं ठीक कर दूंगा। उसने कहा कि चुप, भूलकर इस तरह का शब्द मत प्रयोग करना। मुझसे ऊंचा! मुझसे लंबा है, ऊंचा नहीं। उसने तत्काल सुधार करवा दिया। लंबाई और ऊंचाई में फर्क होता है। मुझसे लंबा तू जरूर है, लेकिन ऊंचा क्या है, ऊंचा कैसे होगा! मेरा अंगरक्षक और मुझसे ऊंचा! नेपोलियन ने सिद्ध करने की कोशिश की। कहते हैं कि लेनिन जब बैठता था तो उसके पैर बहुत छोटे थे—ऊपर का शरीर तो ठीक था, पर पैर बहुत छोटे थे-कुर्सी से लटक जाते थे, पैर उसके जमीन से नहीं लगते थे। इससे वह बड़ा पीड़ित था, वह छिपाकर बैठता था अपने पैरों को। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि वह पैरों की कमजोरी ही उसकी दौड़ थी कि जमाकर बता देगा पैर। ऐसे जमाकर बता देगा कि कोई भी उखाड़ न सके। तुम इसे अगर खोजोगे तो पा लोगे, दूसरों में नहीं, अपने में भी पा लोगे। तुम अपने में भी पा लोगे कि कौन सी चीज तुम्हें बेचैन किए जा रही है। कौन सी बात तुम्हें घाव की तरह खटक रही है। उसी के कारण तुम दौड़ रहे हो। जिसके सब घाव भर गए, उसकी कोई पदाकांक्षा नहीं रह जाती, कोई महत्वाकांक्षा नहीं रह जाती। उसके जीवन से राजनीति विसर्जित हो जानी चाहिए। हो ही जाएगी। राजनीति का अर्थ ही होता है, हीनग्रंथियों से पीड़ित लोगों की दौड़। राजनीति का अर्थ होता है, विक्षिप्तता। एक तरह का पागलपन। - धन की दौड़ भी एक तरह का पागलपन है। महत्वाकांक्षा ही पागलपन का सार है। सूत्र पागलपन का महात्वाकांक्षा है-कुछ होकर दिखा दूं। क्यों? क्या तुम नहीं हो? कुछ बनकर बता दूं। क्यों? क्या तुम जैसे हो वैसे परिपूर्ण, पर्याप्त नहीं हो? विन्सेंट वानगाग-पश्चिम का बहुत बड़ा चित्रकार-बहुत कुरूप था। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं, उसकी कुरूपता के कारण ही वह सौंदर्य का आराधक हो गया। और उसने बड़े सुंदर चित्र बनाए। सुंदरतम चित्र बनाए। वह चित्रों से सिद्ध करना चाहता था कि मेरी छोड़ो, मेरे हाथ के सौंदर्य को देखो। चेहरा उसका कुरूप था। कुरूप आदमी सौंदर्य में उत्सुक हो गया। तुमने कभी किसी सुंदर स्त्री को चित्र बनाते देखा? सुंदर स्त्री को कविता लिखते देखा? 337
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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