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________________ शब्दों की सीमा, आंसू असीम वह काम सहजता में ही हो सकता है। यहां तो मैं एक गीत गा रहा हूं। यहां तो मैं तुम्हारे हृदय के तारों को छेड़ने की कोशिश कर रहा हूं। यहां कुछ सिद्धांत थोड़े ही दिए जा रहे हैं, यहां तो एक-साधना की जा रही है। मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक। प्रणय-प्रलय की मधुसीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक। रागें हैं लाचारी मेरी ताने बान तुम्हारी मेरी इन रंगीन मृतक खंडों पर अमृतरस ढुलका दो मालिक मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक। संस्कृति का बोझ न छू छू मत इतिहास लोक छू मत माया न ब्रह्म छू मत तू हर्ष-शोक सिर पर. मत रख अतीत एक गीत, एक गीत, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक। प्रणय-प्रलय की मधु सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक। गीत हो कि जी का हो जी से मत फीका हो आंसू के अक्षर हों स्वर अपने ही का हो प्रलय हार, प्रलय गीत, एक गीत, एक गीत, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक। प्रणय-प्रलय की मधु सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक। यहां तो प्रभु का गीत तुम सुन सको, इसका प्रयास चल रहा है। मैं तुम्हारे हृदय 321
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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