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________________ एस धम्मो सनंतनो सोम स्वयं ही छलक गया है अधरों का अपराध नहीं है। गीतों का अपराध नहीं है । प्यार भरे दो शब्द कहे थे पर तुमने रच दिए कथानक ज्ञात नहीं था बदनामी के विहग उड़ेंगे कभी अचानक आकर्षण की विषकन्या से अनजाने ही ब्याह रचाया सुरभि स्वयं ही बिखर गयी है भ्रमरों का अपराध नहीं है। गीतों का अपराध नहीं है । अश्रु स्वयं ही ढलक गए हैं पलकों का अपराध नहीं है। गीतों का अपराध नहीं है। दर्द स्वयं ही मचल गया है गीतों का अपराध नहीं है। जो स्वयं हो, शुभ । जो सहज हो, शुभ । आंसू बहें तो रोकना मत। न बहें तो बहाने की चेष्टा मत करने लगना । जो सहज हो, शुभ । जो असहज हो, अशुभ । आंसू बहें तो बह जाने देना, संकोच मत करना। यहां कोई लोकलाज थोड़े ही करनी है ! कहा न मीरा ने - सब लोकलाज खोयी । यहां भी रोके रखोगे आंसुओं को तो फिर कहां रोओगे ? 1 और अगर आंसू रोक लिए, तो फिर मुस्कुराहट भी रुक जाएगी। क्योंकि उसी द्वार से मुस्कुराहट भी आती है, जहां से आंसू आते हैं। वहीं से गीत भी पैदा होते हैं, जहां से आंसू पैदा होते हैं। वहीं से उत्सव भी झरता है, जहां से उदासी पैदा होती है। तुम हल्के बनो, तुम सहज बनो। जो आए, उसे आने दो। जैसा आए, वैसा ही आने दो। तुम जरा भी हेर-फेर न करना । दोनों तरह की संभावनाएं हैं। कुछ लोग जो नहीं रो सकते, वे भी चेष्टा कर सकते हैं रोने की, वह गलत हो जाएगी। अभी अपने से नहीं आए हैं तो प्रतीक्षा करो। और कुछ लोग जो रो सकते हैं, उनको भी भय लगता है कि रोना कि नहीं ! कोई क्या कहेगा ! पास-पड़ोस के लोग क्या सोचेंगे! गांव में खबर होगी तो लोग समझेंगे पागल ! बुद्धि खराब हो गयी ? तो तुम भी प्रभावित हो गए, सम्मोहित हो गए? लोग कुछ-कुछ कहेंगे। तो आदमी रोकता है। नहीं, रोकना मत। क्योंकि यहां अगर हम कुछ भी काम करने इकट्ठे हुए हैं, तो 320
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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