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________________ शब्दों की सीमा, आंसू असीम उसे रो-रोकर कहते हैं। आंसू कुछ कहते हैं। कुछ ऐसा कहते हैं जो और किसी विधा में कहा नहीं जा सकता। कुछ ऐसा कहते हैं जो शब्दों में अंटता नहीं, बंधता नहीं। शब्दों की सीमा है, आंसू असीम हैं। तो आंसू के संबंध में एक बात समझना, जब भी तुम्हारे मन में कोई भाव इतना घना हो जाएगा-चाहे दुख, चाहे सुख; चाहे शांति, चाहे अशांति; चाहे उदासी, चाहे उत्सव-कोई भी भाव जब इतना घना हो जाएगा कि तुम उसे सम्हाले न सम्हाल सकोगे, तो वही भाव आंसुओं में बहता है। आंसू निर्भार करते हैं। ___ और इनको कुछ रोकना मत। कभी-कभी मेरी बात सुनकर आनंद के आंसू बहेंगे। और कभी-कभी मेरी बात सुनकर तुम्हें अपने सारे जीवन का दुख याद आ जाएगा, सारे जीवन की व्यर्थता याद जा जाएगी, सारे जीवन का घाव जैसे मैंने छू दिया हो, पीड़ा बहने लगेगी, तब भी आंसू बहेंगे। दोनों हालत में शुभ हैं। आंसू तो इतना ही कह रहे हैं कि तुमसे मेरे हृदय का नाता हो गया, अब नाता बुद्धि का न रहा। और बुद्धि का जब तक नाता है, तुम विद्यार्थी; जिस दिन हृदय का हो गया, उस दिन शिष्य। जब तक बुद्धि का नाता है, तब तक मैं तुम्हारा शिक्षक; जिस दिन हृदय का हो गया, उस दिन गुरु। जिस दिन तुमने आंसुओं से सेतु बना लिया, जिस दिन तुमने आंसुओं में पातियां लिखकर मेरी तरफ भेज दी...। दर्द स्वयं ही मचल गया है गीतों का अपराध नहीं है। जो कुछ भी मुझको मिल पाया उतने.से संतोष मुझे था घिरा अभावों की सीमा में फिर भी तो परितोष मुझे था पर अब अकुलाया-सा धीरज असहयोग करने को आतुर अश्रु स्वयं ही ढलक गए हैं पलकों का अपराध नहीं है। गीतों का अपराध नहीं है। बादामी नयनों से प्रतिपल दिया तुम्हीं ने नेह निमंत्रण समझ-बूझ आंचल उलझाया फिर क्यों मुझ पर दोषारोपण रतनारे सपनों ने पढ़ ली मिलनातुर मंत्रों की भाषा 319
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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