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एस धम्मो सनंतनो
देखते ही वह तो भूल ही गया क्षणभर को कि दुश्मन पास हैं। और जब वह जागा, इस जीवन की कथा से, तो अचानक उसने पाया - घोड़ों की टाप सुनायी नहीं पड़ती। वे किसी और दिशा में मुड़ गए थे।
सात दिन बाद वह पुनः जीत गया। वापस अपने महल में आ गया। जब महल आया तो बड़ा उसका स्वागत हुआ। अशर्फियां लुटायी गयीं, फूल फेंके गए, सारे गांव में दीपमालिका जलायी गयी, सारा गांव पागल होकर नाचा, उत्सव मनाया। जब यह सारे उत्सव में अपने हाथी पर सवार उसकी शोभायात्रा निकल रही थी, तब एक क्षण को फिर उसने अंगूठी खोली । ये सुख ! उसने फिर वह कागज पढ़ा- यह भी बीत जाएगा। उसने अंगूठी वापस कर ली, जैसा वह अलिप्त हो गया था दुख घड़ी में, वैसा ही अलिप्त हो गया सुख की घड़ी में भी ।
कहते हैं, वह सम्राट बिना कुछ किए समाधि को उपलब्ध हो गया।
तो माणिक बाबू, इन घड़ियों का उपयोग करना । जो हो, होता है, बीत जाता है। एक ही चीज है हमारे भीतर जो कभी नहीं बीतती, वह हमारा साक्षीभाव है। वही है शाश्वत, सनातन, सदैव । उस एक को पकड़कर ही आदमी परमात्मा के द्वार तक पहुंच जाता है।
आखिरी प्रश्न :
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आपको सुनकर आंसू ही आंसू बहते हैं, रोके नहीं रुकते। मैं क्या करूं?
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स से शुभ और क्या होगा? आंसू बहते हैं अर्थात आंसू कुछ कहते हैं। आंसू दुख के ही थोड़े होते हैं, आंसू आनंद के भी होते हैं। और आंसू सदा उदासी का ही थोड़े प्रमाण लाते हैं, आंसू उत्सव की भी खबर लाते हैं। आंसू का तो एक ही अर्थ होता है – कुछ, जो हम शब्दों से नहीं कह पाते, वह आंसुओं से कहना पड़ता है। आंसू तो बड़ी गहरी अभिव्यक्ति है।
आंसू का अर्थ पूछते हो ?
आंसू के अर्थ यदि भाषा में समा पाते तो फिर मैं रोता क्यों,
कविता और कहानी न लिखता !
जब भाषा असमर्थ हो जाती है
आंख से आंसू बहते हैं,
जो बात हम किसी भी विधा में नहीं कह पाते