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________________ शब्दों की सीमा, आंसू असीम अब इस दुख के साथ अपना तादात्म्य मत करना, ऐसा मत सोचना कि मैं दुख हूं-तो सौभाग्य की घटना घट जाएगी। दूर खड़े रहना, देखते रहना, जो हो रहा है, वह दृश्य है, मैं देखने वाला हूं। अगर हम द्रष्टा होकर खड़े हो जाएं, तो फिर कोई विचलित कर नहीं पाती बात; फिर हम असंग मन, निर्लिप्त मन, अकंप मन अपने भीतर इतने दूर बने रहते हैं इस जगत में होकर, जितने दूर हुआ जा सकता है। जगत में होना और जगत में न होना एक साथ घट जाते हैं। और जब दोनों बातें एक साथ घटती हैं, तभी कुछ घटा, तभी जानना कुछ घटा, तभी जानना कि मेरा संन्यास फलित हुआ। ____तो माणिक बाबू, ठीक ही हुआ है। इस सबको सौभाग्य मानना। इस सबके बीच शांतभाव से देखते रहना। यह भी चला जाएगा। ____ एक सूफी कहानी है। एक सम्राट बूढ़ा हुआ। उसने अपने वजीरों को कहा कि मुझे कुछ ऐसा सूत्र चाहिए जो हर हालत में काम आ जाए। वजीरों ने बहुत सोचाऐसा सूत्र जो हर हालत में काम आ जाए! उनकी कुछ समझ में न पड़ा, वे एक फकीर के पास गए। उस फकीर ने एक सूत्र लिखा एक कागज पर, एक अंगूठी में बंद किया और सम्राट को लाकर अंगूठी दे दी और कहा, इसे खोलना तभी जब और कोई सहारा न रह जाए। जब सब तुम जो कर सकते हो कर चुके होओ और कुछ सहारा न रह जाए, तभी खोलना, जल्दी मत खोलना। यह सूत्र ऐसा है कि कठिनाई की आखिरी घड़ी में ही इसका अर्थ प्रगट होगा। . सम्राट ने अंगूठी पहन ली। कई बार उत्सुकता भी जगी, लेकिन वचन दे दिया था तो खोला नहीं। फिर देश पर हमला हुआ कोई दस साल बाद, सम्राट हार गया, भागा अपने घोड़े पर; जंगल में दुश्मन पीछा कर रहे हैं, दुश्मन करीब आते जाते हैं, उसकी घबड़ाहट बढ़ती जाती है, तभी उसे अचानक अपने हाथ में अंगूठी की याद आयी। और तभी वह घड़ी भी आ गयी, लेकिन उसने सोचा कि अभी भी ऐसी घड़ी कहां आयी है, अभी भी बच सकता हूं, अभी भी कुछ कर सकता हूं। लेकिन वह घड़ी भी आ गयी। आगे जाकर रास्ता समाप्त हो गया, नीचे खाई थी, पीछे लौट नहीं सकता था, दुश्मन करीब आता जा रहा है, घोड़ों की टाप और भी करीब आने लगी, और भी करीब आने लगी। उसने आखिरी क्षण तक धीरज रखा, जब उसे लगा कि बस अब क्षणभर की देर है कि दुश्मन आ जाएंगे, उसने अंगूठी खोली, कागज निकाला। कागंज में कुछ भी न था, एक छोटा सा वाक्य लिखा था-दिस टू विल पास, यह भी बीत जाएगा। एक क्षण में जैसे बिजली एक कौंध गयी। एक क्षण में उसे दिखायी पड़ा अपना सब जीवन; सब बीत गया, तो स्वभावतः यह भी बीत जाएगा, रुकता क्या है? बचपन नहीं रुका, जवानी नहीं रुकी; पिता नहीं रुके, पत्नी नहीं रुकी, बेटे नहीं रुके; कुछ नहीं रुका। आया और गया; गंगा कितनी बह गयी! जीवन के इस चित्र को 317
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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