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एस धम्मो सनंतनो
खयाल आ गया था कि शायद मैं तुम्हें भूल ही गया हूं। तीन साल से नहीं लिया था नाम, यह बात सच है। इसलिए इस बात को, जो छोटी लगती है, छोटी मत समझना। उसमें तुम्हारे लिए बड़ा इशारा है। औरों के लिए भी इशारा है।
प्रश्न जो है, वह भी महत्वपूर्ण है।
कभी सब ठीक चला-धन, परिवार, स्वास्थ्य-तो तमने माना था कि मेरी कृपा से हुआ। फिर संजय गांधी डूबे और तुम्हारे भी पांच लाख ले ड्बे-वह औरों के भी ले डूबे, वह अपनी माताजी को भी ले डूबे-इसको भी तुम ऐसा ही समझना कि यह भी मेरी कृपा से हुआ। क्योंकि पांच लाख मिलें तो तुम मुझे धन्यवाद दो और पांच लाख खो जाएं तो तुम मुझे धन्यवाद न दो, तो फिर संग-साथ पूरा न हुआ। सुख आए तो तुम समझो मेरी कृपा से आया और दुख आए तो तुम मेरी कृपा न समझो, तो बात अधूरी रह जाएगी, बेईमानी की हो जाएगी। ।
खयाल करना कि सुख से भी बड़ी संभावना दुख में है। क्योंकि आदमी सुख में तो सो जाता है, दुख में जागता है। घर बन जाए, तो स्वभावतः हम कहते हैं, हमारे गुरु की कृपा। घर जल जाए, तब भी तुम हिम्मत रखना कहने की कि हमारे गुरु की कृपा। जो घर बारै आपना चलै हमारे संग, कबीर ने कहा है, जो सब जला-जलूकर तैयार हो जाए वह हमारे साथ चल सकता है। __तो ठीक ही हुआ, माणिक बाबू! आग भी लग गयी, अग्निकांड में जल भी गया, संजय गांधी भी डूबे, पांच लाख भी ले गए, स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा है, हृदय भी दुर्बल हुआ है, यह सब भी ठीक है। इस सबको भी वरदान में बदला जा सकता है। सिर्फ जागकर इसे देखना, इससे तादात्म्य मत बनाना। ____ जो घर जल गया, वह अपना था ही नहीं। और जो हृदय दुर्बल हो गया है, वह भी तुम्हारा असली हृदय नहीं है। और जो शरीर बूढ़ा होने लगा है, वह भी तुम नहीं हो। और जो रुपए तुम्हारे डूब गए, उसमें तुम्हारा क्या था! किसका क्या है! हम ऐसे ही आते बिना कुछ लिए और बिना कुछ लिए जाते।।
इसमें अगर हम साक्षी हो पाएं, जागकर देख पाएं, तो परमप्रसाद उपलब्ध होता है। और ध्यान रखना, दुख में जागने की संभावना ज्यादा है। सुख में तो आदमी सो जाता है। सुख में जागना ही कौन चाहता है! जब तुम कोई सुखद सपना देख रहे हो, फिर कोई जगाने लगे, तो तुम कहते हो, ठहरो भी, ठहरो भी! अभी पूरा सपना तो हो जाने दो! लेकिन दुखद सपने में कोई जगाए तो तुम धन्यवाद देते हो।
फिर खयाल करना, कहते हैं न हम कि दुख में भगवान की याद आती है। दुख में हमें दिखायी पड़ना शुरू होता है इस जगत का सत्य। सुखं में तो आंखों पर पर्दे पड़ जाते हैं और झूठ सच मालूम होने लगता है। दुख में असलियत दिखायी पड़ती है। बुद्ध के चार आर्य सत्य–कि दुख है, पहला आर्य सत्य अनुभव में आना शुरू होता है। बुद्ध के वचन सार्थक होने शुरू होते हैं कि दुख है, जरूर दुख है।
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