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एस धम्मो सनंतनो
के तार छेड़ सकू, इसके लिए तुम्हें राजी कर रहा हूं। ये सारी बातें, कि गीता की, कि धम्मपद की, कि जिन-सूत्रों की, बहाने हैं। इन बहानों से तुम्हारे हृदय के तार किसी तरह छिड़ जाएं, उनमें झंकार उठे। तुम सहज होओगे तो ही झंकार उठ सकेगी। मैं चाहता हूं, तुम रोमांचित हो जाओ, तुम्हारा रो-रोआं कंपने लगे प्रभु के लिए पुकार से, सत्य की आकांक्षा से, अभीप्सा से। उस यात्रा में सहजता पाथेय है-पुण्य-पाथेय। वही कलेवा है उस यात्रा में मार्ग का।
तो जिनकी आंखें सक्षम हैं रोने को, रोकना मत। उन्हीं आंखों से अभी आंसू बहते हैं, उन्हीं आंखों से रोशनी भी बहेगी। आंसू साफ कर देंगे रास्ते को, ताकि रोशनी बह सके। __ और यह जो घटना घटती है, यह बुद्धि की नहीं है, हृदय की है। यह जी की है, ही की है। इसे तो वे ही पा सकते हैं जो पागल होने को तैयार हैं। यह मतवालों की दुनिया है। यहां तुम्हें मैं थोड़ी शराब पिला सकूँ, तो काम पूरा हो गया। यहां से तुम थोड़े डगमगाते लौटो, तो मैं सफल हुआ। तुम कहीं पैर रखो और कहीं पड़ने लगें, तो बात हो गयी। एक तरफ तुम बेहोश हो जाओ तो दूसरी तरफ होश जगता है। इस संसार के प्रति बेहोशी आ जाए तो परमात्मा के प्रति होश आता है। यहां तुम अगर बहुत ज्यादा होश में जीए, सम्हल-सम्हलकर जीए, नियंत्रण से जीए, तो परमात्मा में कभी भी न जाग सकोगे।
और ध्यान रखना, धन्यभागी हैं वे, जो यहां सो जाएं और वहां जाग जाएं। तो लोकलाज की फिकर छोड़ो।
पूछा है, 'आपको सुनकर आंसू ही आंसू बहते हैं, रोके नहीं रुकते, अब मैं क्या करूं?'
रोओ! करने को क्या है ! कर-करके तो तुमने सब खराब किया है। करने से ही तो कर्म पैदा हुआ है। करो मत। अब होने में बहो।
आज इतना ही।
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