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________________ एस धम्मो सनंतनो वह छोड़कर जाएं और नग्न होकर आनंद लें, यह उनका ढंग। मजे से लें। उन पर किसी का कोई बंधन नहीं होना चाहिए। और यह जनक की मौज कि उसे कोई अड़चन ही नहीं आ रही है राजमहल में, तो वह जाए क्यों? वह राजमहल में भी उसी परमदशा को उपलब्ध हो रहा है। तो ठीक है, वहीं उपलब्ध हो जाए। अलग-अलग ढंग के लोग हैं। दुनिया में एक जैसे लोग नहीं हैं। अब तुम समझो इस बात को। एक सूफी कहानी है। दो फकीर साथ-साथ रहते हैं। दोनों में बड़ा विवाद होता है। विवाद इस बात का था कि एक आदमी पैसा पास रखने में मानता था। वह कहता था, कुछ पैसे तो पास होने ही चाहिए। वक्त-बेवक्त जरूरत पड़ जाती है। उसकी बात भी गलत तो नहीं थी। दूसरा कहता है कि पैसे पास रखने से झंझट रहती है, रात ठीक से सो भी नहीं सकते, खयाल बना रहता है, कोई चुरा न ले! कोई गठरी न ले जाए! और फिरं पैसे पास रहते हैं तो यह खयाल बना रहता है कि खर्च न हो जाएं। तो बचाए रखो, बचाए रखो। ये सब फिजूल की चिंताएं हैं। और फिर परमात्मा पक्षियों को दे रहा है, पौधों को दे रहा है, तो हमारी फिक्र न करेगा? । और वह दूसरा फकीर कहता कि परमात्मा ने तुम्हारी फिक्र की, तुमको बुद्धि दे दी, अब बुद्धि का मतलब यह है कि बुद्धि से चलो। बुद्धि कहती है, पैसा सम्हालकर रखो, थोड़ा पैसा पास रखो। पशु-पक्षियों को बुद्धि नहीं दी है, इसलिए उनकी फिक्र सीधी करता है। तुम्हारी सीधी फिक्र की कोई जरूरत नहीं। छोटा बच्चा है, तो बाप उसका हाथ पकड़कर चलता है। जवान हो गया, फिर हाथ पकड़कर चले तो बात भद्दी लगती है। आदमी जवान हो गया, आदमी प्रौढ़ हो गया। पशु-पक्षियों की सीधी फिक्र करता है, नहीं तो ये तो मर ही जाएंगे। आदमी की सीधी फिक्र नहीं करता है, क्योंकि आदमी अब अपनी फिक्र करने में खुद समर्थ हो गया। ऐसा उनमें विवाद चलता रहता। पहला फकीर कहता कि यह सब अविश्वास है, परमात्मा पर तुम्हारी श्रद्धा नहीं है। अगर उस पर भरोसा है, तो जिसने आज तक फिक्र की, कल भी करेगा। आखिर मुझे देखो न! तुम्हीं तो नहीं जी रहे, मैं भी जी रहा हूं। बिना पैसे के भी जी रहा हूं। एक दिन ऐसी घटना घटी कि दोनों यात्रा करके आए, जंगल में रास्ता भूल गए, एक नदी के किनारे पहुंचे। इस तरफ बड़ा खतरा था, रात रुकना बहुत मुश्किल था और नाव वाला रुपया मांगता था। एक रुपए से कम में उतारने को तैयार नहीं था। वह कहता, अब मैं घर जा रहा हूं, दिनभर से थक गया हूं, अब अगर चलना हो तो एक रुपया लूंगा। ऐसे तो दो पैसे में उतारता था! और जिसके पास पैसा था, उसने कहा, कहो, अब क्या इरादा है! उतरना कि नहीं उतरना? जो पैसे के खिलाफ था, वह सिर्फ मुस्कुराया, उसने कुछ कहा नहीं। दोनों नाव में बैठे, पैसे वाले ने एक रुपया मांझी को दिया, दोनों उस तरफ उतर 308
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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