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शब्दों की सीमा, आंसू असीम इसलिए जैनों और बौद्धों का बड़ा प्रभाव पड़ा। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जैनों और बौद्धों के संन्यास में कुछ भी नहीं है, मैं सिर्फ प्रभाव का कारण बता रहा हूं। जैनों और बौद्धों के संन्यास में भी वही घटा जो हिंदुओं के ऋषि और मुनि को घट रहा था। क्योंकि उसका कोई संबंध नहीं है इस बात से कि घर में हो कि बाहर हो, वह कहीं भी घट जाता है। परमात्मा ने कोई शर्त नहीं लगा रखी है कि मैं यहीं घटूंगा। कपड़े पहनोगे तो नहीं घटूंगा, कपड़े नहीं पहनोगे तो घटूंगा। कि पत्नी होगी पास तो नहीं घटुंगा, कि पत्नी नहीं होगी पास तो घटूंगा। परमात्मा बेशर्त उपलब्ध है।
इसलिए उनको भी उपलब्ध हुआ है जो परिवार में थे। जनक जैसे व्यक्ति को भी उपलब्ध हो गया है, जो सम्राट था। और उनको भी उपलब्ध हुआ है जो सब छोड़कर जंगल में चले गए। क्योंकि परमात्मा बाजार में भी उतना है जितना जंगल में। परमात्मा सब जगह है, उसके अतिरिक्त कोई है ही नहीं। इसलिए उसे पाने के लिए कोई शर्त नहीं है।
यह मौज की बात है, किसी को नग्न होने में मौज आती है, वह नग्न हो जाए। मगर नग्नता को त्याग मत कहना, मौज कहना। कहना कि इस आदमी को नग्न होने में मजा आता है, यह प्रसन्न होता है। नग्न होने की भी मौज है। वस्त्रों में एक तरह का बंधन है। एक तह का अटकाव है। ___ तुमने कभी देखा, एकांत में जाकर अगर नदी के किनारे तुम नग्न हो गए हो, सूरज की धूप तुम पर पड़ी है, हवाओं ने तुम्हें छुआ है, तो एक तरह की स्वतंत्रता का बोध होगा। इसलिए सारी दुनिया में जहां-जहां संस्कृति विकसित होती है, वहां-वहां नग्नता बढ़ने लगती है। नग्न क्लब बनते हैं। नग्न स्नान के लिए मुक्त बीच हो जाते हैं। बढ़ती जाती है। क्योंकि नग्नता में एक तरह की पुलक है। नग्नता में फिर तुम छोटे बच्चे के जैसे हो गए। जब वस्त्रों का आवरण भी न था, जब कुछ भी छिपाते न थे। जब सब सीधा-साफ था। तुम खुले-खुले थे, निष्कपट थे।
तो मैं नग्नता को त्याग नहीं कहता। मैं तो नग्नता को मौज कहता हूं। वह भी भोग का एक ढंग है। बहुत सामान तुम्हारे घर में हो, इससे तुम्हारी स्वतंत्रता कम होती है। क्योंकि जितना सामान हो उतनी चिंता होती है। सामान जितना कम हो, उतनी स्वतंत्रता होती है। जिसके पास सिर्फ जरूरत का है, उसकी स्वतंत्रता बड़ी होती है। तो त्याग नहीं कहता मैं त्याग को, मैं समझदारी कहता हूं। वह बुद्धिमानी है। त्याग कहने से गड़बड़ पैदा होती है। त्याग कहने से भोगी प्रभावित होता है। मैं उसे परमभोग कहता है। वह तुमसे ज्यादा समझदारी की बात है। क्यों झंझट पालो? क्यों बहुत तरह की झंझट में रहो? अगर झंझट के बिना रह सकते हो, तो खूब मजे की बात है। अगर झंझट में कोई नहीं है, तब तो फिर कोई बात ही नहीं है।
इसलिए मैं नहीं कहता जनक को कि तुम छोड़कर जाओ। और मैं नहीं कहता महावीर को कि तुम छोड़कर मत जाओ। मैं कहता हूं, महावीर की यह मौज है कि
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