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________________ एस धम्मो सनंतनो तो गुरुकुल बड़े संपन्न थे। वहां वर्षा हो रही थी धन की। तो तुम्हें यह बात तो दिखायी ही पड़ती होगी कि हमारे ही जैसे लोग, बातें भर ऊंची करते हैं, जीवन में कहां ऊंचाई है? और बातें तो तुम्हारी समझ में भी नहीं आ सकती हैं, लेकिन जीवन तुम्हारी भी समझ में आ सकता है। वह तो अंधे को भी दिखायी पड़ता है। ___ तो जब जैन और बौद्ध भिखारी खड़े हुए, भिक्षु खड़े हुए, संन्यासी खड़े हुएअगृही, सब छोड़कर खड़े हो गए–तो स्वभावतः, उनका प्रभाव पड़ा। तुम ऐसा समझो कि एक हिंदू-मुनि, तुम्हारे जैसा, पत्नी के साथ खड़ा है, बच्चों के साथ खड़ा है। फिर एक श्वेतांबर मुनि सफेद वस्त्रों में, अलग-थलग, न कोई पत्नी, न कोई बच्चे, अकेला खड़ा है। फिर एक दिगंबर-मुनि, नग्न, वस्त्र भी नहीं। तीनों में किसके प्रति तुम्हारे मन में ज्यादा समादर पैदा होगा? स्वभावतः, दिगंबर के प्रति पैदा होगा। इसलिए दिगंबर नहीं मानते कि श्वेतांबर-मुनि में कुछ भी रखा है। क्या रखा है! कपड़े तो पहने ही हुए हो! ऊनी कपड़े का भी उपयोग कर लेते हो सर्दी होती है तो। दिगंबर-मुनि को देखो, कपड़े का उपयोग ही नहीं करता। सर्दी हो कि गर्मी हो, नग्न रहता है, नग्न ही जीता है। तो दिगंबर तुम्हें भी प्रभावित करेगा। नंबर दो पर श्वेतांबर आएगा। नंबर तीन पर हिंदू आएगा। तो हिंदू साधु-संन्यासी की प्रतिष्ठा गिर गयी एकदम, बौद्ध और जैनों के प्रभाव में। हिंदू धर्म विलुप्त होने लगा। इसलिए शंकराचार्य ने अनुकरण किया। शंकराचार्य ने हिंदुओं में नयी परंपरा डाली ठीक बौद्धों और जैनों जैसे संन्यासी की। सब त्यागकर हिंदू-संन्यासी भी खड़ा हो। जब मुसलमान हिंदुओं के संपर्क में आए, जैनों के, बौद्धों के संपर्क में आए, तब उनको भी लगा कि संन्यास तो असली यही है। संन्यासी हो तो ऐसा हो। यह बात समझने जैसी है कि भोगी के मन में त्याग का बड़ा प्रभाव पड़ता है। यह तुम्हारा भोगी का मन है जो त्याग से प्रभावित होता है, फिर त्यागी में कुछ हो या न हो। क्योंकि नग्न खड़े हो जाने से कुछ नहीं होता है। और लोग जीवन के बड़े विरोधी हैं। यह भी एक संघर्ष की प्रक्रिया है। एक आदमी ठंड में खड़ा है नग्न, तुम्हें प्रभावित करता है। क्यों? क्योंकि यह भी एक तरह का संघर्ष कर रहा है। सर्दी को नहीं मानता। जूझ रहा है। यह भी एक तरह के अहंकार की प्रक्रिया है। तुम संसार में लड़ रहे हो, यह संन्यास में लड़ रहा है। मगर लड़ाई जारी है। ___ अब एक आदमी मजे से बैठा है दुशाला ओढ़कर शांति से, यह तुम्हें न जंचेगा कि इसमें क्या संघर्ष है! दुशाला ओढ़कर तो हम भी शांति से बैठ जाते हैं। एक आदमी छप्पर के नीचे शांति से बैठा है, यह तुम्हें प्रभावित न करेगा। एक आदमी धूप में खड़ा है, यह तुम्हें प्रभावित करेगा। एक आदमी अपने पैर पर खड़ा है, यह तुम्हें प्रभावित न करेगा। एक आदमी सिर के बल खड़ा है, बीच बाजार में, भीड़ लग जाएगी। उलटे आदमी बहुत प्रभावित करते हैं। 306
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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