________________
एस धम्मो सनंतनो
थे, उनका परिवार था। उपनिषद अगृही भिखारियों ने नहीं लिखे हैं। उपनिषद संन्यस्त पुरुषों ने लिखे हैं, यह बात सच है; लेकिन वे संन्यस्त गृहस्थ ही थे।
तो हिंदू परंपरा मौलिक रूप से सब छोड़कर भाग जाने के पक्ष में नहीं है। और यहूदी परंपरा भी सब छोड़कर भाग जाने के पक्ष में नहीं है। यहूदी रबाई, उनका धर्मगुरु, उनका धर्मोपदेष्टा परिवार में रहता है। पत्नी है, बच्चे हैं, परिवार है।
दुनिया की दो बड़ी परंपराएं हैं-यहूदी और हिंदू। इन दोनों परंपराओं का जो मूलस्रोत है, वह अगृही संन्यासी के पक्ष में नहीं है। दुनिया के तीन बड़े धर्म—यहूदी, इस्लाम और ईसाइयत-यहूदी परंपरा से पैदा हुए हैं। और दूसरे तीन बड़े धर्म-हिंदू, जैन और बौद्ध-हिंदू परंपरा से पैदा हुए हैं। दोनों के स्रोत गृहस्थ को स्वीकार करते हैं, अगही को नहीं। गृही को स्वीकार करते हैं। तो न तो यहूदी, न इस्लाम, न ईसाई-ईसाई भी भिक्षावृत्ति पर भरोसा नहीं करता। __फिर अगृही संन्यास कहां से पैदा हुआ? अगृही संन्यास पैदा हुआ जैन और बौद्धों से। और जैन और बौद्धों का अनुकरण करके शंकराचार्य ने भी हिंदू परंपरा में अगृही संन्यास को प्रवेश करवाया। फिर जब इस्लाम भारत आया, तो अगृही संन्यासी को देखकर इस्लाम में भी उसका परिणाम हुआ और सूफी फकीर पैदा हुए।
लेकिन, अधिकतम परंपराएं, बहुमत परंपराएं अगृही संन्यास के पक्ष में नहीं हैं। मगर इसका प्रभाव पड़ा। जैन और बौद्धों का प्रभाव पड़ा। उसका कारण भी समझने जैसा है।
अगर तुम्हारे सामने जैन-मुनि खड़ा हो और हिंदू-मुनि खड़ा हो, तो तम जैन-मुनि से प्रभावित होओगे। तुम चाहे हिंदू ही क्यों न होओ। तुम जैन-मुनि से प्रभावित होओगे, हिंदू-मुनि से नहीं। क्योंकि हिंदू-मुनि तो तुम्हारे जैसा ही मालूम पड़ेगा। प्रभाव तो विपरीत का पड़ता है। प्रभाव तो उसका पड़ता है जो तुमसे कुछ भिन्न कर रहा हो। तुम्हारा ही जैसा! हिंदू-मुनि की पत्नी होगी, बच्चे होंगे, घर-द्वार होगा। तुम कहोगे, इसमें और मुझमें फर्क क्या है? यह तो हमीं जैसा है। अब इसको ज्ञान हुआ है कि नहीं, उसका तो हमें कुछ भी पता नहीं चल सकता। ज्ञान तो कुछ भीतरी बात है, बाहर तो कुछ उसका हिसाब लगता नहीं। लेकिन जैन-मुनि को कुछ हुआ है, यह बाहर से हिसाब लग जाता है। नग्न खड़ा है, घर-द्वार छोड़ दिया है, इसको कुछ हुआ है!
फिर भोगी मन को त्याग का बड़ा प्रभाव पड़ता है। यह तुम समझना। भोगी ही त्याग से प्रभावित होते हैं। क्योंकि जिसको तुम पकड़ते हो, उसको इस आदमी ने छोड़ दिया; इसी में तो प्रभाव है। तुम धन के दीवाने हो, तुम रुपए गिनते रहते हो,
और यह आदमी लात मारकर चला गया। तुम कहते हो, चमत्कार है! यह आदमी पूज्य है। तुम्हारे मन में होता है, कभी हमारी भी इतनी हिम्मत हो कि हम भी लात मारकर चले जाएं, अभी तो नहीं है हिम्मत, लेकिन कम से कम इस आदमी के चरण
304