________________
एस धम्मो सनंतनो
तो लड़ने में जीवन मानता है। जब कि लड़ने में जीवन नहीं है, सिर्फ पीड़ा है। जीवन तो इस विराट के साथ एक हो रहने में है। लड़ने में तो हम विभाजित हो जाते हैं, अलग हो जाते हैं, टूट जाते हैं। लड़ने में तो हम एक द्वीप बन जाते हैं, अलग-थलग। लड़ने में तो छोटा सा टुकड़ा इस विराट के खिलाफ खड़ा हो जाता है। धारा के विपरीत बहने की चेष्टा है लड़ना। ___ समर्पण का अर्थ है, धारा के साथ बह जाना। हारे को हरिनाम। स्वीकार कर लेते हैं कि मैं तो जीत ही नहीं सकता। क्योंकि यह मैं की बात ही जीत नहीं सकती, यह मैं का भाव ही जीत नहीं सकता। यह मैं ही हार लिए हुए है। मैं असत्य है, इसलिए मैं जीत कैसे सकता है? न-मैं जीतता है। लेकिन न-मैं का मतलब यह होता है, हार को परिपूर्णरूप से स्वीकार कर लेना। इसलिए हार में हार नहीं है, हार में जीत है और जीत में हार है। जब तक तुम जीतते रहोगे, हारते रहोगे। जिस दिन तुमने हार स्वीकार कर ली, फिर कैसी हार ? फिर तुम जीत गए। यहां जो झुक गए, उन्होंने पा लिया, जो अकड़े रहे, वे वंचित रह गए।
पूछते हो, 'क्या चलाए रखता है?'
तो एक तो आशा, कि जो आज नहीं हुआ, कल शायद हो जाए। शायद! क्यों न हो, औरों को हुआ है, मुझे क्यों न होगा? ___ न औरों को हुआ है, न तुम्हें होगा। किसको हुआ है? इस संसार में कोई कभी जीता है!
सिकंदर जब मरा, तो उसने कहा, मेरे हाथों को अर्थी के बाहर लटके रहने देना। उसके वजीरों ने पूछा कि आपका मन-मस्तिष्क तो ठीक है ? ऐसा कभी हुआ नहीं। यह तो कोई परंपरा भी नहीं है कि अर्थी के बाहर हाथ लटके रहें, क्या मतलब है? क्या चाहते हैं आप? सिकंदर ने कहा, मैं चाहता हूं, ताकि लोग देख लें कि मैं भी खाली हाथ जा रहा हूं, हारा हुआ। और अकेली एक ही अर्थी इस पृथ्वी पर निकली है, सिकंदर की, जिसमें हाथ अर्थी के बाहर लटके हुए थे। सभी अर्थियां ऐसी ही निकलनी चाहिए, ताकि लोग देख लें कि हाथ खाली जा रहे हैं।
मजे की बात तो यह है कि बच्चा जब आता है तो बंधे हाथ आता है। जब मरते हो, तब और जो लाए थे वह भी लुट गया, हाथ और खाली हो गया-हाथ बिलकुल खुले जाते हैं। शायद बच्चा कुछ लेकर भी आता है—उस जगत की कोई गंध, उस जगत का कुछ आनंद, अहोभाव! ___तुमने एक बात खयाल की, कोई बच्चा कुरूप नहीं होता। फिर ये सारे सुंदर बच्चे कहां खो जाते हैं? यह सौंदर्य कहां तिरोहित हो जाता है? बाद में तो मुश्किल से कभी कोई आदमी सुंदर होता है, अधिक लोग कुरूप हो जाते हैं। यह सौंदर्य उस लोक का है, दूसरे लोक का है, यह छाया दूसरे लोक की है। ये बच्चे के निर्मल प्रतिबिंब बन रहे हैं, बच्चे के निर्मल मन पर, निर्मल दर्पण पर, अभी धूल नहीं जमी
302