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एस धम्मो सनंतनो
वह आदमी भीतर गया। उसने दो डालर दांव पर लगाए और जीत गया। और जीतता चला गया। दस हजार डालर तो दूर, उसके पास एक लाख डालर थे आधी रात होते-होते। फिर उसने सोचा, अब आखिरी दांव लगा लूं। उसने वह एक लाख डालर भी दांव पर लगा दिए-अगर जीत जाता तो बीस लाख हो जाते-मगर वह हार गया।
आधी रात पैदल ही होटल वापस लौटा, दरवाजा खटखटाया, पत्नी ने पूछा, क्या हुआ? उसने कहा, वह दो डालर हार गया। वह दो डालर हार गया। उसने सोचा, अब एक लाख की बात कहने का कोई मतलब ही नहीं। इतनी देर कहां रहे फिर ? उसने कहा, वह पूछ ही मत! अब वह दुख छेड़ ही मत! इतना तू जान कि दो डालर जो थे, वह भी हार गया हूं। ____ जुए का खेल जैसा है जगत। यहां कभी-कभी जीत भी होती है—ऐसा नहीं है कि नहीं होती, जीत होती–मगर हर जीत किसी और बड़ी हार की सेवा में नियुक्त है। हर जीत किसी बड़ी हार की नौकरी में लगी है। यहां कभी-कभी सुख भी मिलता है, नहीं कि नहीं मिलता, लेकिन हर सुख किसी बड़े दुख का चाकर है। हर सुख तुम्हें किसी बड़े दुख पर ले आएगा। सुख भरमाता है। सुख कहता है, सुख हो सकता है, घबड़ाओ मत, भागो मत। तो आशा बनी रहती है कि शायद अभी हुआ, कल फिर होगा, परसों फिर होगा। तो एक तो आशा चलाती, एक अहंकार चलाता।
निराश्रित भी चलेंगे, पर कहां तक? कह नहीं सकते। कहां तक? कह नहीं सकते। फिर वही मधुकण झरेंगे निशि-दिवस पुलकित करेंगे फिर सरस ऋतुपति धरा को फूल से फल से भरेंगे पर न अब तुम दुख हरोगे मन सुमन पुलकित करोगे, ध्वंस में भी पलेंगे, पर कहां तक? कह नहीं सकते। फिर वही सरगम सजेंगे राग में नूपुर बजेंगे
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