________________
शब्दों की सीमा, आंसू असीम
तुम्हें शाश्वत से जोड़ दे। वह हवा का झोंका, जो तुम्हारी जन्मों-जन्मों की जमी हुई धूल को झाड़ ले जाए। जो तुम्हारे दर्पण को निर्मल कर दे। ऐसा निर्मल कि उस दर्पण में सत्य का प्रतिबिंब बनने लगे।
अगर गुरु के पास होने की कला तुम्हें आ गयी, तो क्रांति सुनिश्चित है।
दूसरा प्रश्नः
आदमी चलता ही रहता है-हार में, जीत में; सफलता में, असफलता में प्रेम में, विरह में। वह क्या है जो उसे चलाए रखता है?
दो चीजें अहंकार और आशा। एक तो अहंकार चलाए रखता है। क्योंकि
- अहंकार कहता है, टूट जाना मगर झुकना मत, मिट जाना मगर रुकना मत। एक तो अहंकार चलाए रखता है। कुछ भी हो जाए, अहंकार कहता है, चले चले जाओ। लड़ते रहो, जूझते रहो। अगर हार ही बदी है किस्मत में, तो भी लड़ते-लड़ते ही हारना। हार स्वीकार मत करना। अहंकार हार को स्वीकार नहीं करने देता। और उसी कारण हम बुरी तरह हार जाते हैं।
जो हार को स्वीकार कर लेता है, उसकी तो जीत शुरू हो गयी। कहते हैं न-हारे को हरिनाम। जिसने हार को अंगीकार कर लिया, उसके जीवन में तो हरि उतरना शुरू हो जाता है। संसार में जीत तो होती ही नहीं, हार ही होती है। जीत हो ही नहीं सकती। जीत संसार का स्वभाव नहीं है। वह छोटी-मोटी जीत, जो तुम्हें दिखायी पड़ती है, बड़ी हारों की तैयारी है और कुछ भी नहीं। वह वैसे ही है जैसे जुआरी जुआ खेलने जाता है। कभी-कभी जीत भी जाता है। वह जीत,सिर्फ बड़ी हार के लिए आकर्षण है। ___ एक आदमी के संबंध में मैं पढ़ रहा था। उसे दस हजार डालर वसीयत में मिल गए। उसने सोचा कि एक बार जुआ खेलकर जितने बढ़ सकें ये डालर उतना बढ़ा लेना उचित है, ताकि जिंदगीभर के लिए फिर झंझट ही काम करने की मिट जाए। वह अपनी पत्नी को लेकर जुआघर गया। वह सब हार गया, सिर्फ दो डालर बचे। वह भी इसलिए बचा लिए थे कि होटल में लौटकर जाने के लिए रास्ते में टैक्सी का किराया भी तो चकाना पड़ेगा।
वह बाहर आया, बाहर उसने पत्नी से कहा कि सुन, आज पैदल ही चल लेंगे, यह दो और लगा लेने दे। नहीं तो मन में एक बात खटकती रह जाएगी कि कौन जाने, यह दो के लगाने से जीत हो जाती! पत्नी ने कहा, अब तुम जाओ, मैं तो चली।
299