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शब्दों की सीमा, आंसू असीम
उन्होंने अपने भिक्षुओं को इकट्ठा कर लिया, गांव के लोगों को इकट्ठा कर लिया और कहा, सुनो, दुनिया में दो व्यक्ति महाधन्यशाली हैं—वह मां, जो पहली बार बुद्ध को भोजन कराती; और वह व्यक्ति, जो बुद्ध को अंतिम बार भोजन कराता है। यह बहुत धन्यशाली व्यक्ति है जो सामने बैठा है। इसने इतना पुण्य अर्जन किया है, तुम कल्पना न कर सकोगे।
और जब भिक्षुओं को पता चला बाद में, जब वैद्य आया और उसने बताया कि यह तो विषाक्त भोजन था, बचना मुश्किल है। तो आनंद ने बुद्ध को कहा कि आपने यह किस तरह की बात कही कि यह अत्यंत धन्यभागी है ? इसने जहर दे दिया! भला अनजाने दिया हो, मगर इसकी मूढ़ता का परिणाम भारी है।
बुद्ध ने कहा, इसीलिए मैंने कहा, अन्यथा मेरे मर जाने के बाद तुम पागल हो जाते और उसे मार डालते। उसकी पूजा करना, क्योंकि अंतिम जिससे भोजन ग्रहण किया बुद्ध ने, वह उतना ही धन्यभागी है जितना जिससे प्रथम किया। ये दो भोजन-पहला और अंतिम। तुम उसकी पूजा करना, आनंद। उसने तो प्रेम से दिया है। प्रेम से दिया गया जहर भी अमृत है। और अप्रेम से दिया गया अमृत भी जहर है। प्रेम से मौत भी आ जाए तो महाजीवन के द्वार खुलते हैं, और अप्रेम से जीवन भी बढ़ता चला जाए तो राख ही राख हाथ लगती है। तुम उसका प्रेम देखो, जो हुआ है वह बात तो गौण है।
और फिर कौन यहां सदा जीने को आया है। किसी दिन तो मरता। मरना तो निश्चित था। मरना तो होने ही वाला था। इस आदमी का कोई कसूर नहीं, यह तो निमित्त मात्र है। फिर मैं देखो बूढ़ा भी हो गया, बुद्ध ने कहा। अच्छा ही है कि अब विदा हो जाऊं, अब इस देह को और खींचना कठिन भी होता जाता है। ___अंतिम दिन भी, मरने के पहले भी, भोजन जो दिया गया था, उसके धन्यवाद में उन्होंने उपदेश दिया था।
सूत्र सीधा-साफ है। तुम इतने प्रेम से बुलाकर भोजन दिए हो बुद्ध को, वे तुम्हारे भीतर अगर अपना सारा प्रेम उंडेल दें तो कुछ आश्चर्य नहीं। और उनका प्रेम एक ही अर्थ रखता है कि सोया जाग जाए, कि अंधेरे में दीया जले, कि जहां अनंत-अनंत जन्मों की दुर्गंध है, वहां थोड़ी सी सुवास आत्मा की फैल जाए। उपदेश का यही अर्थ होता है।
उपदेश का अर्थ भी समझना। उपदेश का अर्थ आदेश नहीं होता। बद्ध ऐसा नहीं कहते कि ऐसा करो। बुद्ध इतना ही कहते हैं, ऐसा-ऐसा करने से मुझे ऐसा-ऐसा हुआ। बुद्ध यह नहीं कहते हैं कि तुम भी ऐसा करो; करोगे तो पुण्य पाओगे, नहीं करोगे तो पापी, नरक में सड़ोगे। बुद्ध कोई कमांडमेंट नहीं देते।।
बाइबिल में टेन कमांडमेंट हैं, दस आदेश। वे उपदेश नहीं हैं, उनमें आज्ञा है। जहां आज्ञा है, वहां राजनीति झलक आती है। और जहां आज्ञा है, वहां दूसरे पर
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