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एस धम्मो सनंतनो
फिर भोजन प्रतीकात्मक है। भोजन प्रेम का सबूत है।
इसे समझना चाहिए। जब पहली दफा बच्चा पैदा होता है तो वह मां से प्रेम और भोजन साथ-साथ पाता है। उसी स्तन से प्रेम पाता है, उसी स्तन से भोजन पाता है। इसलिए भोजन और प्रेम का एक गहरा नाता है, गहरा एसोसिएशन है। तभी तो जब तुम्हें किसी से प्रेम होता है, तुम उसे घर भोजन के लिए बुला लाते हो। जब कोई स्त्री तुम्हें प्रेम करेगी तो तुम्हारे लिए भोजन बनाने को आतुर हो उठेगी। वह सूचक है। वह खबर देता है। वह प्रेम का प्रतीक है।
बुद्ध को तुम अपने घर भोजन के लिए बुला लाए, वह तुम्हारे प्रेम का प्रतीक है। तुम्हारे पास जो है, वह तुम भेंट कर रहे हो-वह न कुछ है, उसका कोई मूल्य नहीं, लेकिन तुम्हारे प्रेम का बड़ा मूल्य है। और जहां भी प्रेम हो, वहां पुरस्कार मिलता ही है। जहां भी प्रेम दिया जाए, वहां प्रेम हजारगुना होकर लौटता ही है। वह जीवन का शाश्वत नियम है। तुम जो दोगे, हजारगुना होकर तुम्हें मिलेगा। गाली दोगे, तो हजार गालियां लौट आएंगी। प्रेम दोगे तो प्रेम हजारगुना होकर लौट आएगा। और यह जीवन का शाश्वत नियम कहीं और काम करे या न करे, बद्धपुरुषों के सान्निध्य में तो काम करेगा ही। तुमने भोजन दिया, तुमने बुद्ध को घर बुलाया...तुम तो चकित होओगे, बुद्ध का जिस भोजन के कारण अंत हुआ, उनके जीवन का अंत हुआ, उस दिन भी वे उपदेश करना नहीं भूले। ___ आखिरी भोजन जो उन्होंने किया, वह विषाक्त था। जिसने बुलाया था, वह बहुत गरीब आदमी था। इतना गरीब आदमी था कि बाजार से हरी सब्जियां भी खरीद नहीं सकता था। तो बिहार में गरीब आदमी कुकुरमुत्ते सुखाकर रख लेते हैं, उनको फिर गीला करके सब्जी बना लेते हैं। कुकुरमुत्ता ऐसे ही ऊग आता है, कहीं भी ऊग आता है। लकड़ी पर, गंदगी पर, कहीं भी ऊग आता है। इसलिए उसका नाम कुकुरमुत्ता है, जहां-जहां कुत्ते पेशाब करते हैं, वहीं ऊग आता है। कुकुरमुत्ते इकडे कर लेते हैं गरीब और उनको सुखाकर रख लेते हैं, फिर सालभर उनसे भोजन का काम चला लेते हैं। कभी-कभी कुकुरमुत्ते विषाक्त होते हैं, अगर विषाक्त भूमि में, या किसी विष के करीब पैदा हो गए।
इस गरीब आदमी ने बुद्ध को निमंत्रण दिया। उसके पास कुछ भी न था। कुकुरमुत्ते की ही सब्जी बनायी थी। बुद्ध ने चखी तो वह कड़वी थी। बात तो साफ हो गयी कि वह विषाक्त है। लेकिन वह सामने ही पंखा झल रहा है और उसकी
आंखों से आनंद के अश्रु बह रहे हैं और उसके पास कुछ और है भी नहीं, और उसे यह कहना कि तेरा भोजन विषाक्त है, उसके हृदय को बुरी तरह तोड़ देना होगा। इसलिए बुद्ध चुपचाप, बिना कुछ कहे वह विषाक्त भोजन कर लिए। भोजन के करते ही विष फैलने लगा, लेकिन उस दिन, उस आखिरी दिन भी वे उपदेश देना नहीं भूले। और पता है, उन्होंने उपदेश क्या दिया?
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