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________________ शब्दों की सीमा, आंसू असीम पहला प्रश्नः • इस देश में बुद्धपुरुषों के उपासक के घर में भोजनोपरांत सदा से ही बुद्धपुरुष कुछ न कुछ उपदेश अवश्य करते रहे हैं। क्या इस परंपरा के पीछे कोई सूत्र है? कृपा करके समझाएं। सूत्र सीधा और साफ है। तुम वही दे सकते हो, जो तुम्हारे पास है। तुम शरीर का भोजन दे सकते हो। बुद्धपुरुष वही दे सकते हैं, जो उनके पास है। वे आत्मा का भोजन दे सकते हैं। तुम जो देते हो, वह तो न कुछ है। बुद्धपुरुष जो देते हैं, वह सब कुछ है। जो समझदार हैं, वे यह सौदा कर ही लेंगे। यह सौदा बड़ा सस्ता है। बुद्ध को, महावीर को लोग भोजन देते, तो भोजन के बाद वे दो वचन उपदेश के कहते थे। तुमने कुछ दिया, उससे बहुत ज्यादा तुम्हें देते थे। तुमने जो दिया, उसका क्या मूल्य है? कितना मूल्य है? उन्होंने जो दिया, वह अमूल्य है। वे दो पंक्तियां कभी किसी के जीवन के अंधेरे मार्ग पर रोशनी बन जातीं। वे दो पंक्तियां कभी किसी के सखे मरुस्थल जैसे हृदय में फूल बनकर खिल जातीं। वे दो पंक्तियां जहां गीतों का पैदा होना बंद हो गया था, वहां गीतों को जन्म देने लगतीं। उन थोड़े-थोड़े उपदेशों ने लोगों का आमूल जीवन बदल डाला है। 295
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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