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एस धम्मो सनंतनो
मिला। तुम अपनी आंख से देख लो। उस आदमी को भी लगा कि बात तो ठीक ही है, सब सुंदर था-सब सुंदर था, स्वर्ग जैसा सुंदर था। फिर अंदर ले गया। फिर उसने कहा, अब तुम चुन लो, ये तीन स्थान हैं, इसमें से तुम्हें जो चुनना हो। उसने कहा, चुनाव की भी स्वतंत्रता है यहां? यहां बिलकुल स्वतंत्रता है, यहां परम स्वतंत्रता है, तुम चुन लो, जहां तुम्हें रहना हो, तीन खंड हैं नर्क के। __पहले खंड में ले गया, तो घबड़ाया वह आदमी। वहां कोड़ों से बड़ी पिटाई हो रही थी, लहूलुहान लोग हो रहे थे। उसने कहा, भई, यह हमें न जंचेगा, अब दूसरे खंड में ले चलो। दूसरे खंड में ले गया, तो वहां आग में कड़ाहे जल रहे थे-अब असलियत प्रगट होनी शुरू हुई, वह जो दिखावा और स्वागत इत्यादि था, सब खतम हो गया-उन कड़ाहों में लोग डाले जा रहे थे, भूने जा रहे थे, जलाए जा रहे थे, चिल्ला रहे थे, रो रहे थे। उसने कहा, नहीं भाई, यह भी हमें न जमेगा। लेकिन अब वह घबड़ाने लगा कि पता नहीं तीसरे में क्या हो! और तीन ही हैं और तीन में से चुनना है। तीसरे में गया तो उसे यह कुछ बात जंची। घुटना-घुटना मल-मूत्र भरा हुआ था और लोग खड़े हुए कोई चाय पी रहा, कोई काफी पी रहा—जिसको जो पीना हो। सिर्फ यह था कि मल-मूत्र घुटने-घुटने तक था।
तो उसने कहा कि यह चलेगा। ये सब गपशप भी कर रहे हैं लोग, कोई चाय पी रहे हैं, कोई काफी पी रहा है, कोई कोकाकोला पी रहा है, सब, यह ठीक है। तकलीफ तो है थोड़ी, घुटने-घुटने तक मल-मूत्र है, लेकिन यह तो हो जाएगा, कम से कम आग और कोडों से तो बेहतर है।
उसको भी एक चाय दे दी गयी, वह भी चाय पीने लगा, बड़ा प्रसन्न। और तभी एक जोर की घंटी बजी और एक आवाज आयी कि अब बस, अपने-अपने सिर के बल खड़े हो जाओ। वह चाय पीने के लिए थोड़ी छुट्टी मिली थी। उसने कहा, मारे गए। सिर के बल! वह मल-मूत्र के गड्ढे में अब सिर के बल खड़े होने का असली वक्त आ गया। __ बुद्ध ने कहा है, नर्क स्वर्ग का धोखा देता है। दुख सुख के आवरण पहनकर आते हैं। उनसे सावधान रहना। जो बात अभी सुख की मालूम पड़े, उसी पर चुनाव मत कर लेना। देखना, दूरदृष्टि होना। आज कठिनाई भी हो पहाड़ चढ़ने में तो घबड़ाना मत। सच अगर आज मुश्किल में भी डाले तो पड़ जाना। और सत्य की खोज में असुरक्षा हो, कठिनाई हो, कांटे मिलें, कंटकाकीर्ण पथ मिले, गुजर जाना; क्योंकि एक दिन यही कठिनाई तुम्हें उन शिखरों पर ले जाएगी जहां शाश्वत शांति है, जहां वस्तुतः स्वर्ग है।
एवं भो पुरिस! जानाहि पापधम्मा असञता। मा तं लोभो अधम्मो च चिरं दुक्खाय रन्धयु।।
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