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सत्य सहज आविर्भाव है
'हे पुरुष, संयमरहित पापकर्म ऐसे ही होते हैं...।' सुख का धोखा देते हैं, मिलता दुख है। 'इसे जानो। तुम्हें लोभ और अधर्म चिरकाल तक दुख में ही डाले न रहें।'
जागो! और यह जागरण केवल शब्दों को सुनने से नहीं आने वाला है। इस जागरण के लिए चेतना की सारी मूर्छा की ग्रंथियां काटनी पड़ें। जहां-जहां मूर्छा है, मोह है, वहां-वहां से मुक्त अपने को करो, निग्रंथ करो।
इन सूत्रों पर ध्यान करना, स्वाध्याय करना। क्यों? क्योंकि स्वाध्याय न करना मंत्रों का मैल है।
असज्झायमला मंता अनुट्ठानमला घरा।
ये भी मंत्र हैं। इन पर स्वाध्याय करना, अन्यथा इन पर भी मैल जम जाएगा, ये किसी काम न आ सकेंगे। पंडित मत बनना इन बातों को सुनकर, प्रज्ञा को जगाना, होश को जगाना। ये बातें तुम्हारा अनुभव बन जाएं, तो ही मुक्तिदायी हैं।
आज इतना ही।
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