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________________ एस धम्मो सनंतनो हम हैं, वैसे आप चलो। काम कर रहे हैं, कर रहे हैं करने का दिखावा कर रहे हैं; काम करने-वरने की कोई जरूरत नहीं है। ___ अगर तुम किसी दफ्तर में काम करते हो और ईमानदारी से काम करो, दूसरे तुम्हें समझाएंगे कि भई, ऐसा नहीं चलता! तुम अगर रिश्वत नहीं लेते तो दूसरे तुम्हें समझाएंगे कि भई, ऐसे नहीं चलता, तुम अड़चन खड़ी कर दोगे! तुम हम सबके बीच में झंझट खड़ी कर रहे हो! यहां जो चलता है, वैसे ही चलो। इस संसार में झूठ का चलन है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, निर्लज्ज का जीवन सरल है, सुगम है, सुविधापूर्ण है। उसे लज्जा ही नहीं है। वह जैसा मौका देखता है वैसा हो जाता है। अवसरवादी का जीवन बड़ा सुविधापूर्ण है। अगर तुम्हारे जीवन में कोई सिद्धांत है और तुम्हारे जीवन में अगर कोई साधना है, तो तुम हमेशा अड़चन पाओगे। हमेशा कठिनाई पाओगे। __ कोई साधना नहीं है, कोई सिद्धांत नहीं है, निर्लज्ज का जीवन है, अवसरवादी का जीवन है; जिसने जहां देखी जैसी हवा बह रही है वैसे ही चल पड़े; जिसके साथ जैसा लगता है कि ठीक चलेगा वैसा ही चला लिया; कौवे जैसे कांव-काव करने वाले लोग-इशारा है वही भिक्षु की तरफ, लालबुझक्कड़ की तरफ, लालूदाई की तरफ-कौवे की तरह कांव-कांव करने वाले लोग, जिनके जीवन में सत्य की कोई किरण नहीं, सिर्फ शब्द मात्र है, उनका जीवन सुविधापूर्ण है। पंडितों का जीवन सुविधापूर्ण है। '...लूटपाट करने वाले, पतित, बकवादी, पापी मनुष्य का जीवन सुख से बीतता है।' 'लज्जाशील, नित्य पवित्रता के गवेषक, सजग, मितभाषी, शुद्ध जीविका वाले और ज्ञानी मनुष्य का जीवन कष्ट से बीतता है।' हिरिमता च दुज्जीवं निच्चं सुचिगवेसिना। अलीनेनप्पगन्भेन सुद्धाजीवेन पस्सता।। जितनी शुद्धता से जीना चाहोगे, उतनी कठिनाई होगी। क्योंकि पहाड़ पर चढ़ना कठिन है। चढ़ाव सदा कठिन होता है। ऊंचाई पर उठना कठिन, नीचाई में उतरना सदा आसान। बुरा करना सदा आसान, भला करना सदा कठिन। इसलिए कठिनाई से मत बचना। क्योंकि कठिनाई ही उठाती है। इसलिए तो हम साधना को तप कहते हैं, तपश्चर्या कहते हैं, खड्ग की धार कहते हैं। तलवार की धार पर चलने जैसा है। इसलिए केवल साहसी ही सत्य की यात्रा और खोज में निकलते हैं, गवेषणा में निकलते हैं। _ 'हे पुरुष, संयमरहित पापकर्म ऐसे ही होते हैं, इसे जानो। तुम्हें लोभ और अधर्म 290
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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