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सत्य सहज आविर्भाव है
स्वयं को न जानने का नाम है, अविद्या। 'भिक्षुओ, इस मैल को छोड़कर निर्मल बनो।'
ततो मला मलंतरं अविज्जा परमं मलं। एतं मलं पहत्वान निम्मला होथ भिक्खवे।।
और कहते हैं कि हे भिक्खुओ, हे भिक्षुओ, जब तुम स्वयं को जान लोगे, तभी वस्तुतः निर्मल हो पाओगे। फिर तुम कभी भी मल-मूत्र के गड्ढों में न गिरोगे। फिर तुम्हारा कोई आवागमन न होगा। 'निर्लज्ज, कौवे जैसे कांव-काव करने में बड़े शूरवीर होते हैं...।'
और किसी काम में नहीं, सिर्फ कांव-कांव करने में, शोरगुल मचाने में। 'निर्लज्ज और कौवे जैसे शूर, लूटपाट करने वाले, पतित, बकवादी, पापी मनुष्य का जीवन सुख से बीतता है।' __ यह बड़ी अनूठी बात बुद्ध ने कही। बुद्ध ने कहा, अगर सुविधा से जीना हो तो पापी आदमी का जीवन सुविधा से बीतता है। सुख यानी सुविधा। बेईमान आदमी का जीवन सुविधा से बीतता है। चोर का जीवन सुविधा से बीतता है। यह बात बड़ी अजीब कही।
सुजीवं अहिरिकेन काकसूरेन धंसिना। पक्खन्दिना पगब्भेन संकिलिटेन जीवितं।।
पाखंडियों का जीवन सुविधा से बीतता है। सच्चे आदमियों का जीवन असुविधा से बीतता है। लेकिन बुद्ध कहते हैं, वही असुविधा परम सुख पर ले जाती है। इतने लोगों ने अगर पाखंडियों का जीवन बिताना तय किया है तो अकारण नहीं किया होगा, इसमें कुछ सुख मालूम होता है, सुविधा मालूम होती है। कौन झंझट में पड़े! सच कहे कि झंझट में पड़े। यहां झूठ का चलन है; यहां झूठ करो, सब ठीक चलता है; यहां बेईमान रहो, सब ठीक चलता है; ईमानदार हुए कि झंझट में पड़े। ___मैं एक विश्वविद्यालय में नौकर हुआ। तो मेरे विश्वविद्यालय के और अध्यापक थे, उन्होंने दो-चार दिन बाद मुझसे कहा कि आप जरा ठीक नहीं कर रहे हैं। मैंने कहा, क्या बात है? कहने लगे कि आप चार-चार पीरियड रोज ले रहे हैं! यह सरकारी नौकरी है, यहां चार-चार पीरियड रोज लेने की जरूरत नहीं है। और आप चार-चार लेंगे तो हमको भी अड़चन होगी। यहां तो एक ले लिया, दो लिया, बस बहुत है! कभी यह बहाना, कभी वह बहाना! और स्टाफ रूम में बैठकर गपशप करना, यह उनका सबका काम! वे मुझसे नाराज थे कि यह बात ठीक नहीं है। जैसे
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