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________________ एस धम्मो सनंतनो मगर देखते रहना, गौर से जांच करना। तो उसने देखा कि दिनभर वह धूल ही झाड़ता रहा, वह धर्मशाला का मालिक; कोई यात्री गया, कोई आया, नया कमरा, पुराना, वह धूल झाड़ता रहा दिनभर। शाम को बर्तन साफ करता रहा। रात ग्यारह-बारह बजे तक यह देखता रहा, वह बर्तन ही साफ कर रहा था, फिर यह सो गया। सुबह जब उठा पांच बजे, तो भागा कि देखें वह क्या कर रहा है; वह फिर बर्तन साफ कर रहा था। साफ किए ही बर्तन साफ कर रहा था। रात साफ करके रखकर सो गया था। __इसने पूछा कि महाराज, और सब तो ठीक है, और ज्यादा ज्ञान की मुझे आपसे अपेक्षा भी नहीं, इतना तो मुझे बता दें कि साफ किए बर्तन अब किसलिए साफ कर रहे हैं? उसने कहा, रातभर भी बर्तन रखे रहें तो धूल जम जाती है। उपयोग करने से ही धूल नहीं जमती, रखे रहने से भी धूल जम जाती है। समय के बीतने से धूल जम जाती है। यह तो वापस चला आया। गुरु से कहा, वहां क्या सीखने में रखा है, वह आदमी तो हद्द पागल है। वह तो बर्तनों को घिसता ही रहता है, रात.बारह बजे तक घिसता रहा, फिर सुबह पांच बजे से-और घिसे-घिसायों को घिसने लगा। उसके गुरु ने कहा, यही तू कर, नासमझ! इसीलिए तुझे वहां भेजा था। रात भी घिस, घिसते-घिसते ही सो जा, और सुबह उठते ही से फिर घिस। क्योंकि रात भी सपनों के कारण धूल जम जाती है। समय के बीतते ही धूल जम जाती है। विचार और स्वप्न हमारे भीतर के मन की धूल हैं। तो बुद्ध ने कहा, 'झाड़-बुहार न करना...।' असज्झायमला मंता अनुट्ठानमला घरा। मलं वण्णस्स कोसज्जं पमादो रक्खतो मलं ।। 'और आलस्य सौंदर्य का मैल है।' सौंदर्य यानी जीवंतता। जितने तुम जीवंत हो, उतने तुम सुंदर हो। जितने तुम जीवंत हो, उतने तुम परमात्मा के निकट हो, क्योंकि जीवन की धारा उतनी ही तुमसे बहेगी, उतने ही तुम सुंदर हो। 'आलस्य सौंदर्य का मैल है।' तो बुद्ध कहते हैं, आलसी न बनो। 'और प्रमाद पहरेदारी का मैल है।' .. मूर्छा, सो जाना, झपकी खा जाना, वह पहरेदारी कर मैल है। जागे रहो; होश को जगाए रहो, भीतर एक ज्योति जलती रहे होश की, जो भी करो होश से करो। 'इन सब मैलों से भी बढ़कर अविद्या का परम मैल है।' 288
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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