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________________ एस धम्मो सनंतनो जो दूसरे को छोटा करके बड़ा नहीं होना चाहता, जो स्वयं ही बड़ा होना चाहता है। वही व्यक्ति साधना में उतरता है, जो स्वयं ही बड़ा होना चाहता है। जिसको परमात्मा ने सीधा-सीधा पुकारा है, जो दूसरे के बहाने नहीं । वह जाकर भगवान से यह नहीं कहेगा कि मैं अच्छा आदमी हूं, क्योंकि मेरे पड़ोसी मुझसे भी ज्यादा बुरे आदमी थे। नहीं, वह भगवान के सामने कहना चाहेगा कि देखो मेरे भीतर, दूसरे की तुलना में अच्छा-बुरा नहीं हूं, मैं जैसा हूं यह सामने खड़ा हूं। तुलना से जो बड़प्पन पैदा होता है, वह झूठा है। तुम्हारे स्वयं के निखार से जो बड़प्पन पैदा होता है, वही सच्चा है। तो बुद्ध ने कहा, विध्वंस सरल, सृजन कठिन । और आत्मसृजन तो और भी कठिन है। अहंकार स्पर्धा जगाता । स्पर्धा में ईर्ष्या होती, ईर्ष्या से द्वेष, द्वेष से शत्रुता और फिर तो अंतर्बोध जगे कैसे ? सारी शक्ति तो इसी में व्यय हो जाती है। इसी मरुस्थल में खो जाती है नदी, सागर तक पहुंचे कैसे? दूसरे का विचार ही न करो, समय थोड़ा है, स्वयं को जगा लो, बना लो, अन्यथा मल-मूत्र के गड्ढों में बार-बार गिरोगे । भिक्षुओ, तुम्हीं कहो, बार-बार गर्भ में गिरना मल-मूत्र के गड्ढे में गिरना नहीं तो और क्या है ! यह बात बड़ी गजब की कही बुद्ध ने। मां का पेट है क्या ? मल-मूत्र का गड्ढा है। वहां और है क्या? बच्चा मल-मूत्र में लिपटा ही पड़ा रहता है नौ महीने तक । बार-बार जन्म लेना मल-मूत्र के गड्ढे में बार-बार गिरना है। बुद्धपुरुष छोटी-छोटी घटना से बड़े गहरे इशारे ले लेते हैं। अब कहां लालूदाई का मल-मूत्र के गड्ढे में गिरना और कहां बुद्ध ने खींचा उस बात को । किस अंपूर्व तल पर ले गए ! और उन्होंने कहा, यह लालूदाई जन्म-जन्म में गिरता रहा है। वह इसी की बात कर रहे कि यह बार-बार ऐसे ही भटकता रहा । इसने कभी अपने को बनाया नहीं, दूसरों की निंदा में लगा दी, वही शक्ति आत्मसृजन बन सकती थी। उसी शक्ति की छेनी बनाकर अपनी मूर्ति का निर्माण कर सकता था, भगवान हो सकता था। वह तो किया नहीं और बार-बार गड्ढों में गिरा । गड्ढे – गर्भ के गड्ढे । यह अकेला देश है पृथ्वी पर जहां हमने गर्भ को मल-मूत्र का गड्ढा जाना। बड़ी सच्ची बात है। दुनिया में कहीं नहीं कही गयी यह बात । क्योंकि यह बात ही घबड़ाती है हमको कि मल-मूत्र का गड्डा मां का पेट ! लेकिन है तो मल-मूत्र का गड्डा; घबड़ाए, चाहे न घबड़ाए, लेकिन सच तो सच है। सच को झूठ तो किया नहीं जा सकता। दुबारा जन्म लेने का मतलब फिर नौ महीने मल-मूत्र गड्ढे में पड़ोगे | और फिर जीवनभर भी क्या है । मल-मूत्र ही पैदा करते हैं अधिक लोग, और तो कुछ पैदा करते ही नहीं । इधर भोजन किया, उधर मल-मूत्र किया। अगर उनका पूरा काम तुम समझो तो ऐसा ही है जैसे एक नली - एक तरफ से भोजन डालो, दूसरे तरफ से भोजन निकालते रहो। कुछ और पैदा करते हो ! आत्मा जैसी कोई चीज पैदा होती है ! चेतना जैसी कोई चीज पैदा होती है ! 286
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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