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________________ सत्य सहज आविर्भाव है तो तुम्हीं बेहतर! इनसे तो हम ही बेहतर! जब भी दूसरा छोटा हो जाता है...। इसलिए तुम देखना, निंदा में रस होता है। अगर कोई आदमी आए और किसी की निंदा करने लगे, तो तुम हजार काम छोड़कर कहते हो, हां भाई, और कुछ सुनाओ। फिर क्या हुआ? फिर इसके आगे क्या हुआ? फिर तुम्हें एक खुजलाहट पैदा होती है। तुम हजार काम छोड़ देते हो। तुम भगवान की प्रार्थना कर रहे थे, तुम छोड़ देते हो। कोई निंदक आ गया, तुम कहते हो छोड़ो, प्रार्थना फिर कर लेंगे, ये निंदक महाराज मिलें, न मिलें। इनको वैसे काम भी काफी रहता है, क्योंकि जो मिल जाता है वही इनको घंटों रोक लेता है कि कहो भाई, क्या खबर? चलते-फिरते अखबार भी हैं, जीते-जागते अखबार भी हैं। और स्वभावतः, जीते-जागते अखबार जैसी खबरें लाते हैं, छपे अखबार नहीं ला सकते। छपे अखबारों पर कुछ सरकारी नियंत्रण भी होता है। ये जीते-जागते अखबार, इन पर कोई नियंत्रण नहीं, ये क्या बोलते, इन पर कोई मुकदमा नहीं चलता है, कोई अदालत में नहीं घसीटा जाता, कोई इनको प्रमाण नहीं जुटाना पड़ता। एक स्त्री एक दूसरी स्त्री को किसी तीसरी स्त्री के संबंध में निंदा की बातें कह रही थी। पहली स्त्री बड़ी प्रसन्नता से सुन रही थी। जब पूरी बात हो गयी तो उसने कहा, अरे, कुछ और सुनाओ! थोड़ा कुछ और बताओ! फिर क्या हुआ? उस स्त्री ने कहा, अब छोड़ो भी, जितना मैं जानती थी, उससे दुगुना तो बता ही चुकी। ___ आदमी बढ़ा-चढ़ाकर निंदा कर रहा है। और निंदक तुम्हें अच्छे लगते हैं। कबीर ने तो किसी और मतलब से कहा था, निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय। तुम भी रखते हो, लेकिन किसी और मतलब से। कबीर ने तो कहा था, अपना निंदक आंगन-कुटी छवाकर अपने पास ही रख लेना चाहिए कि अपनी निंदा करता रहे। तुम भी निंदक को पसंद करते हो, अपने को नहीं, दूसरों का निंदक। तुम उसके लिए आंगन-कुटी छवाकर रख लेते हो। तुम कहते हो, आओ हमारे घर में ही विराजो महाराज। यहीं भोजन कर लेना आज, और फिर कुछ गपशप होगी! जब कोई किसी की निंदा करता है तो तुम्हें अच्छा लगता है, क्योंकि वह सारी दुनिया को छोटा करके दिखला रहा है। उसकी तुलना में अचानक तुम्हारी लकीर बड़ी होने लगती है। यह दुनिया के अधिकतम लोगों की व्यवस्था है बड़े होने की। यह बड़े होने का कोई मार्ग नहीं है। यह थोथी बात है। तुम खयाल रखना कि जो दूसरों की निंदा तुमसे कर रहा है, वह उनके पास जाकर तुम्हारी निंदा करता है। करेगा ही। तुमसे और दूसरों से उसे क्या लेना-देना है! वह तो निष्पक्ष भाव से निंदा करता है। वह तो जिसके पास चला जाता है, दूसरों की निंदा कर देता है, और प्रसन्नता से एक कप चाय पी लेता है, सिगरेट पी लेता है, अपना आगे बढ़ जाता है। दूसरा जो वर्ग है, बहुत अल्प, छोटा सा वर्ग है। हजार में एक, लाख में एक। 285
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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