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एस धम्मो सनंतनो
यह भी खूब उपदेश हुआ किसी के विवाह पर! लेकिन बुद्धपुरुष अटपटी बातें कहते सदा पाए गए हैं। यह भी कोई बात हुई! लेकिन बुद्ध तो वही कहेंगे, जो है, जैसा है। और यह मौका सुंदर है। अभी जल रही हैं लपटें तेज। जब तुम्हारे घर में आग लगी हो प्रखर और सब जल रहा हो, तब तुम्हें जगाना ज्यादा आसान है। जब आग बुझी-बुझी हो जाए, राख ही राख रह जाए, तब जगाना मुश्किल है।
इस घड़ी में तो आग ही आग है। सुहागरात के बाद लपटें इस तरह की न रह जाएंगी। हनीमून के बाद तो अक्सर विवाह समाप्त हो जाते हैं, बचता क्या है ? खोल रह जाती, राख रह जाती, बुझे दीए रह जाते। फिर आदमी ढोता है उनको। जब आग प्रगाढ़ता से जल रही है और रोआं-रोआं उसमें जल रहा है, तब जागरण आसान है। तब चोट करनी आसान है। बुद्ध ने ठीक ही अवसर चुना है। कितना ही अटपटा लगे, लेकिन ठीक अवसर चुना है।
रागाग्नि के समान दूसरी कोई अग्नि नहीं, कुमार! वही है नर्क, वही है निद्रा। जागो, प्रिय जागो! और जैसे शरीर उठ बैठा है, वैसे ही तुम भी उठ जाओ, उत्तिष्ठित हो जाओ। __ अभी शरीर चौंककर उठा है। अब ऐसे ही तुम्हारा सूक्ष्म मन भी चौंककर उठे। स्थूल और सूक्ष्म के भीतर छिपा हुआ परम सूक्ष्म भी चौंककर उठे। .
उठो। उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है।
जो ऐसा भीतर उत्तिष्ठित नहीं हो गया है, वह मनुष्य जैसा दिखता भर है, मनुष्य है नहीं। अभी मनुष्यता की शुरुआत नहीं हुई।
और तब उन्होंने यह गाथा कही
नत्थि रागसमो अग्गि।
'राग के समान आग नहीं।'
नत्थि दोससमो कलि।
'द्वेष के समान मैल नहीं।'
नत्थि खंधसमा दुक्खा।
'पंचस्कंधों के समान दुख नहीं।'
नत्थि संति परं सुखं।
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