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________________ उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है सोचेगा कि कौन-कौन से झाड़ काटकर लकड़ी बेची जा सकती है ! उसकी याददाश्त उनकी ही होगी। और अगर तुम किसी चित्रकार को ले गए, तो उसने रंगों का अनूठा जमघट देखा होगा । हरे रंग में भी हजार हरे रंग देखे होंगे। एक ही हरा रंग थोड़े ही है, जरा गौर से देखो। हर वृक्ष अलग ढंग से हरा है। लेकिन कोई पेंटर, कोई चित्रकार ही अलग-अलग हरे रंग देख सकता है । उसे शायद कुछ और दिखायी ही न पड़े। अगर तुम किसी वनस्पतिशास्त्री को ले आओ, तो वह नाम ही नाम देखेगा। लैटिन और ग्रीक नाम उसको याद आएंगे। कि कौन सा वृक्ष किस जाति का है, कहां से आता है, किस देश से आता है। अगर गुलाब का पौधा वह देखेगा तो सोचेगा, ईरान से आता है। यह तुम शायद सोचोगे ही नहीं, क्योंकि तुम्हें ईरान से क्या लेना-देना है ! गुलाब का ईरान से क्या लेना-देना! लेकिन वनस्पतिशास्त्री तत्क्षण सोचेगा, ईरान से आता है । इसीलिए तो हिंदुओं के पास गुलाब के लिए कोई नाम नहीं है। गुलाब तो ईरानी नाम है। गुल आब । हिंदी में तो कोई नाम ही नहीं है गुलाब के लिए । हो भी नहीं सकता, क्योंकि यह पौधा ही हमारा नहीं है । यह पौधा ही उधार है । मगर, सबको यह बात दिखायी न पड़ेगी। हम वही देखते हैं, जो देखने के लिए हम तैयार हैं। - . जैसे ही बुद्ध की रोशनी उस युवक पर पड़ी होगी, उसकी चेतना में एक क्रांति घट गयी — क्षणभर को सही, लेकिन उस धक्के में वह घूम गया। उसका चाक पूरा घूम गया। कहां से कहां हो गया। अभी पत्नी ही दिखायी पड़ती थी, अब पत्नी दिखायी न पड़ी। और जब पत्नी न दिखायी पड़ी, तब जैसे नींद से जागा । उसे भगवान दिखायी पड़े। वह अपूर्व रूप भगवान का, वह अपूर्व ज्योति, वह दिव्यता, वह शांति ! क्षणभर को बारात खो गयी होगी, विवाह खो गया होगा, मंडप खो गया होगा। सब खो गया होगा । क्षणभर को वह किसी और ही लोक में प्रविष्ट हो गया। और तब उसे दिखायी पड़ा भिक्षु संघ । कई - जब भगवान दिखायी पड़े, तो उसे दिखायी पड़े ये लोग जो उनके दीवाने हैं। तब उसे दिखायी पड़े ये लोग जिनमें भी थोड़ी-थोड़ी किरण उनकी है, भगवान की है। जिनमें थोड़ा-थोड़ा स्वाद उनका है। जब मूलस्रोत दिखायी पड़ा, तो ये दिखायी पड़े। जब सूरज दिखायी पड़ा तो ये छोटे-छोटे दीए भी दिखायी पड़े। जब सूरज ही न दिखता हो तो दीए क्या खाक दिखायी पड़ेंगे। सूरज दिखा, रोशनी पहचान में आयी, तो और भी रोशन दीए समझ में आए। तब उसे भिक्षु संघ दिखायी पड़ा। संसार का धुआं जहां नहीं है, वहीं तो सत्य के दर्शन होते हैं। और वासना जहां नहीं है, वहीं तो भगवत्ता के शिखर प्रगट होते हैं । उसे चौकन्ना और विस्मय में डूबा देख भगवान ने कहा, कुमार ! रागाग्नि के समान दूसरी कोई अग्नि नहीं । 15
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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