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________________ एस धम्मो सनंतनो फेरी होंगी। जैसे तुम टार्च लिए होते हो न और किसी के चेहरे की तरफ टार्च को फेर दो, तो सारे टार्च की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ने लगे। ऐसा बुद्ध ने अपने भीतर की टार्च को उस युवक की तरफ घुमाया होगा। रोशनी दौड़ी उस युवक की तरफ । उस रोशनी के संघात में उसके भीतर सोयी हुई प्रज्ञा जैसे चौंककर जग गयी। जैसे वह नींद से जागा, ऐसे चौंककर खड़ा हो गया । और तब उसे भगवान दिखायी पड़े। भगवान कब दिखायी पड़े? जब वह अपनी होने वाली पत्नी को देखने में असमर्थ हो गया। यह बात बड़ी समझने जैसी है । तुम्हारी आंखें सीमित हैं। या तो तुम कामना देखो, या आत्मा देखो । या तो तुम काम देखो, या राम देखो। दोनों एक साथ न देख सकोगे। कभी तुमने रुपए का सिक्का हाथ में रखकर देखा ? तुम दोनों पहलू एक साथ नहीं देख सकते। या तो उलटा रखो सिक्का, तो उसकी पीठ देखो, या सीधा रखो सिक्का, तो उसका मुंह देखो। लेकिन तुम दोनों पहलू एक साथ नहीं देख सकते। सिक्का तो छोटी सी चीज है, फिर भी दोनों पहलू एक साथ देखने का कोई उपाय नहीं है। एक ही देख सकते हो। ऐसा ही राम और काम। एक तरफ नजर लगी हो तो दूसरी तरफ नजर बंद हो जाती है। दूसरी तरफ नजर जाए तो इस तरफ बंद हो जाती है। - तो जैसे ही बुद्ध ने कुछ किया – कुछ किया यानी अपने प्रकाश की धारा को उस युवक की तरफ फेंका, एक सेतु बन गया प्रकाश का, नहा गया होगा वह युवक उस प्रकाश में— अचानक उसे अपनी होने वाली पत्नी दिखायी न पड़ी, कहां गयी ? जो है वही थोड़े ही तुम्हें दिखायी पड़ता है। जो तुम देखना चाहते हो, वही दिखायी पड़ता है। तुमने खयाल किया, तुम क्या देखना चाहते हो वही दिखायी पड़ता है। तुम्हारा संसार सीमित है। तुम्हारा संसार तुम्हारा चुनाव है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जितनी घटनाएं तुम्हारे पास घट रही हैं, उसमें से केवल दो प्रतिशत तुम देखते हो, अट्ठानबे प्रतिशत तुम देखते ही नहीं । अब समझो कि एक सुंदर युवती आती है। तुम पूरी युवती देखते हो ? नहीं देखते। तुम कुछ देखते हो, कुछ छोड़ देते हो। अगर पीछे कोई तुमसे याद करने को कहे कि तुमने क्या देखा, तो तुम शायद थोड़ा-बहुत स्मरण कर पाओगे। शायद तुमसे कोई पूछे कि उसके बाल का रंग क्या था, तो तुम शायद याद न कर पाओ। उसकी आंखों का रंग क्या था, तो शायद तुम याद न कर पाओ। लेकिन कुछ तुम याद कर पाओगे । जो तुम याद कर पाओगे वही तुमने देखा था । तुम्हें इस बगीचे में से गुजारा जाए और बाद में तुमसे पूछा जाए, क्या देखा ? तो हर आदमी अलग-अलग बातें याद करेगा। जो जिसने देखा होगा वही तो याद करेगा न ! बगीचे से सब एक ही गुजरे थे। हो सकता था कोई फूलों का पारखी गुजरा हो। तो वह फूलों को देखेगा। और किसी लकड़हारे को गुजारकर ले गए, तो वह 14
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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