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उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है
'और शांति से बढ़कर सुख नहीं।'
तू किस सुख की बात सोच रहा है? हम देखकर कहते हैं कि वहां सुख नहीं है। हम अनुभव से गुजरकर कहते हैं, वहां सुख नहीं है। तू जिस तरफ दौड़ा जा रहा है, हम भी दौड़े और देख इन भिक्षुओं को, ये भी दौड़े हैं और देख अनंतकाल में अनंत लोग दौड़े हैं, लेकिन सभी खाली हाथ लौट आए हैं। सुख चाहता है न! लेकिन दिशा तेरी गलत है। ___पंचस्कंध बुद्धों का विशिष्ट शब्द है। बुद्ध कहते हैं, मनुष्य का व्यक्तित्व बना है दो चीजों से-नाम, रूप। रूप यानी देह। नाम यानी मन। रूप यानी स्थूल, नाम यानी सूक्ष्म। देह तो एक है, स्थूल देह तो एक है, मन के चार रूप हैं। उन चार के नाम हैं-वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान। ऐसे सब मिलाकर पांच। इन पांच से मनुष्य का व्यक्तित्व बना है। और इन पांच में ही जो जीता है, बुद्ध कहते हैं, पंचस्कंधों के समान दुख नहीं। स्वाद में जी रहे हैं, धन इकट्ठा करने में जी रहे हैं,. पद में जी रहे हैं, राग में जी रहे हैं, आसक्ति में जी रहे हैं; देह को बचाने में लगे हैं कि मर न जाए, बुढ़ापा न आ जाए, साजने-संवारने में लगे हैं—इस तरह जो जी रहा है पंचस्कंधों में या तो मन की वासनाएं हैं, पद की, महत्वाकांक्षाओं की, या शरीर की वासनाएं हैं, इन वासनाओं में जो जी रहा है, वह दुख में जीता है। अशांति में जीता है।
'और शांति से बढ़कर कोई सख नहीं है।'
वह दुख ही दुख में जीता है, इसलिए इस तरह के जीवन की दिशा नर्क की दिशा है।
दूसरा सूत्र
एक समय भगवान पांच सौ भिक्षुओं के साथ आलवी नगर आए। आलवी नगरवासियों ने भगवान को भोजन के लिए निमंत्रित किया। उस दिन आलवी नगर का एक निर्धन उपासक भी भगवान के आगमन को सुनकर धर्म-श्रवण के लिए मन किया। किंतु प्रातः ही उस गरीब के दो बैलों में से एक कहीं चला गया। सो उसे बैल
को खोजने जाना पड़ा। बिना कुछ खाए-पीए ही दोपहर तक वह बैल को खोजता रहा। बैल के मिलते ही वह भूखा-प्यासा ही बुद्ध के दर्शन को पहुंच गया। उनके चरणों में झुककर धर्म-श्रवण के लिए आतुर हो पास ही बैठ गया।
लेकिन बुद्ध ने पहले भोजन बुलाया। उसके बहुत मना करने पर भी पहले उन्होंने जिद्द की और उसे भोजन कराया। फिर उपदेश की दो बातें कहीं। वह उन थोड़ी सी बातों को सुनकर ही स्रोतापत्ति-फल को उपलब्ध हो गया। भगवान के द्वारा किसी को भोजन कराने की यह घटना बिलकुल नयी थी। ऐसा पहले कभी उन्होंने किया न था और न फिर पीछे कभी किया। तो बिजली की भांति भिक्षु-संघ में
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