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________________ एस धम्मो सनंतनो कि जिस आदमी को जल का स्रोत मिल गया है और तुम प्यासे भटक रहे मरुस्थल में, प्यास से तम्हारी आंखें निकली आ रही हैं, तुम्हारी सांस टी जा रही है, तुम्हारे पैर डगमगा रहे हैं, धूल-धूसरित, धूप में, जलते मरुस्थल में तुम भटक रहे हो और मुझे पता है कि जलस्रोत पास ही है, और मैं चुप रहूंगा। मैं चिल्लाऊंगा। ___जीसस ने अपने शिष्यों से कहा है, चढ़ जाओ घरों की मुंडेर पर और चिल्लाओ वहां से। क्योंकि तुम्हें जो मिला है, बहुतों को उसकी जरूरत है; और उन्हें उसका कोई पता नहीं, और इतने पास है! नहीं तो उपनिषद पैदा न होते, वेद पैदा न होते, कुरान-बाइबिल पैदा न होते। यह धम्मपद कैसे पैदा होता? यह मुंडेर पर कुछ लोग चढ़ गए और चिल्लाए। यह जानते हुए चिल्लाए कि चिल्लानेभर से तुम्हारी प्यास नहीं बुझ जाएगी। लेकिन चिल्लाने से शायद तुम्हें पता चल जाए कि किस दिशा में स्रोत है जल का। तुम शायद चल पड़ो। बुद्ध ने कहा है, बुद्धपुरुष इशारा करते हैं, चलना तो तुम्हें पड़ता है, पहुंचना तुम्हें पड़ता है। झेन फकीर कहते हैं, हम अंगुली बताते हैं चांद की तरफ, कृपा करके अंगुली मत पकड़ लेना, अंगुली में चांद नहीं है। लेकिन अंगुली चांद की तरफ इशारा तो कर सकती है-अंगुली में चांद नहीं है, जाना, लेकिन अंगुली इशारा कर सकती है। मगर आदमी बेईमान है, बड़ी तरकीबें हो सकती हैं। ___एक दफे ऐसा हुआ। एक सज्जन मेरे साथ यात्रा किए। एक आदमी के वह बड़े भक्त थे। एक दफे मुझे भी खींचकर उनके पास ले गए कि आप देख तो लें एक बार, वह बिलकुल परमहंस हैं। मैंने देखा, वह परमहंस इत्यादि कुछ भी न थे, उन्हें सिर्फ मिरगी की बीमारी थी। मिरगी आ जाती थी तो मुंह से फसूकर गिरने लगता था, लोग कहते, समाधि लग गयी। और आधे शरीर में उन्हें लकवा लग गया था, तो वह बोल भी नहीं सकते थे। बोलते थे तो सब अस्तव्यस्त हो जाता था। थोड़े-बहुत बोलते तो वह भी समझ में नहीं आता था, क्या कह रहे हैं। फिर भी लोग उसमें से मतलब निकाल लेते। उसमें से मतलब निकालना आसान भी था। कोई लाटरी के टिकिट का नंबर निकाल लेता उनके बोलने से-वह जो बोलते उसमें कुछ साफ तो होता ही नहीं था, क्या बोल रहे हैं, सब गड्ड-बड्ड था—कोई लाटरी का नंबर निकाल लेता, कोई कुछ निकाल लेता, कोई कुछ निकाल लेता, कोई लड़के-लड़की के विवाह की तारीख निकाल लेता-तुम्हारी मौज, तुम जो निकालना चाहो। उसमें तो कुछ था ही नहीं, वह जो कहते थे, उसमें तो कुछ था ही नहीं मामला, प्रलाप था। और वह आदमी करीब-करीब पागल अवस्था में थे। मगर भक्त उनको भोजन कराते, उनका जूठा भोजन कर लेते; चाय पिलाते, आधा कप खुद पी लेते फिर। यह सज्जन भी उनके भक्त थे। मैंने उनसे कहा कि यह आदमी पागल है, इनका 276
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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