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सत्य सहज आविर्भाव है ज्ञानी; लेकिन यह तो कम से कम बोलना पड़ता है, इतना तो बोलना पड़ता है कि ज्ञानी मौन रहते हैं। यह कौन बोलता है ? यह कौन कहता है ? ये अपूर्व उपनिषद किसने लिखे हैं? और उपनिषद में लिखा है कि जो बोलता, वह जानता नहीं; और जो जानता, वह बोलता नहीं। तो हम उपनिषद के ऋषियों के संबंध में क्या सोचें ? ये जानते थे कि नहीं जानते थे ?
दो ही बातें हो सकती हैं। या तो ये जानते थे । अगर ये जानते थे तो चुप रहना था, बोलना नहीं था, उपनिषद होने नहीं थे। या ये नहीं जानते थे । और नहीं जानने वालों ने जो बातें लिखी हैं, वे सच कैसे हो सकती हैं ? और उन्होंने लिखा कि जो जाता है, वह बोलता नहीं । न जानने वालों ने लिखा है कि जो जानता है, वह बोलता नहीं; और जो नहीं बोलता, वही जानता है। तो न जानने वालों की बातों का कोई मूल्य तो नहीं हो सकता।
लेकिन बात कुछ और ही है । बात ऐसी नहीं है कि जानने वाला बोलता नहीं । जानने वाला बोल सकता है। लेकिन जो उसने जाना है, वह कभी बोला नहीं जा सकता। जानने वाला खूब बोल सकता है, लेकिन जो उसने जाना है, उसकी तरफ इशारे ही कर सकता है, जो जाना है, वह बोल नहीं सकता। जो जाना है, उसे कैसे बोलोगे ? वह तो गूंगे का गुड़ है। लेकिन गूंगा गुड़ की तरफ इशारा तो कर सकता है, इसके लिए तो नहीं रोक सकते।
गूंगा हूं, मैंने गुड़ खा लिया और मैं मिठास से भरा हूं और मस्त हो रहा हूं। और तुम आए और पूछने लगे, क्या हो रहा है? मैं गूंगा हूं, बोल नहीं सकता, लेकिन इशारा तो बता सकता हूं कि यह रखा है - यह माणिक बाबू की दुकान, यहां से गुड़ खरीद लो - इतना तो कर सकता हूं। इशारा तो कर सकता हूं कि गुड़ यहां मिल जाएगा, यह जो चीज रखी है, यह खा लो। गुड़ तो नहीं बोला जा सकता, सीधी-सीधी बात है, साफ-साफ बात है, मेरे बोलने से कैसे गुड़ बोला जाएगा ! मेरे शब्द को खाकर थोड़े ही स्वाद मिलेगा। गुड़ शब्द में थोड़े ही गुड़ का रस है - तो गुड़ को कैसे बोलोगे - लेकिन गुड़ शब्द इशारा तो कर सकता है, गुड़ की तरफ इशारा कर सकता है । उपनिषद ब्रह्म को बोलते नहीं, ब्रह्म की तरफ इशारा करते हैं, गुड़ की तरफ इशारा करते हैं।
तो ठीक कहते हैं उपनिषद कि जो जाना गया है, वह बोला नहीं जा सकता । लेकिन फिर भीं जिसने जाना है, वह बहुत बोलता है, हजार तरह से बोलता है, जिंदगीभर लगा रहता है बोलने में कि चलो इधर से इशारा नहीं पहुंचा तो इधर से पहुंच जाए, बाएं से नहीं तो दाएं से दाएं से नहीं तो इधर से, उधर से, किसी भी तरह से तुम्हें पहुंचा दें वहां तक जहां उस अमृत का ढेर लगा है, जहां तुम उस स्वाद को ले लो।
असल में ज्ञान जिसको हो गया है, वह बिना बोले कैसे चुप रहेगा? ऐसा समझो
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