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एस धम्मो सनंतनो
उसकी बात से गांव के लोग प्रभावित हो गए। उन्होंने कहा, हो न हो लालूदाई छिपा हुआ हीरा है। गुदड़ी का लाल है। अभी तक पता ही नहीं था ! यह तो अच्छा हुआ कि इसने हमें याद दिला दी, नहीं तो हम कभी इसकी बात ही न सुनते। इसकी तो किसी को खबर ही नहीं है।
गांव के लोग प्रार्थना करने लगे कि धर्मोपदेश दें हमें, समझाएं हमें। लालूदाई जरा मुश्किल में पड़े।
आलोचना सरल थी कि क्या बकवास लगा रखी है! लेकिन धर्मोपदेश देना तो — कभी दिया भी नहीं था । धर्म का कुछ पता भी नहीं था । धर्म हो, तो उपदेश देना थोड़े ही पड़ता है, उपदेश होता है। धर्म हो, तो सोचना-विचारना थोड़े ही पड़ता है। धर्म का अनुभव हो तो उस अनुभव से ही बातें बहती हैं। और जो बातें अनुभव से सहज बहती हैं, वे ही सच्ची होती हैं।
लालूदाई बड़ी मुश्किल में पड़े होंगे, लेकिन रहे तो भिक्षुओं के पास थे। ऊंची बातें सुनते थे, बुद्ध के पास थे, बड़ी-बड़ी बातें सुनते थे, उन्हीं बड़ी-बड़ी बातों में उन्होंने अपना संरक्षण खोज लिया होगा। खयाल रखना, आदमी इतना बेईमान है कि बड़ी-बड़ी बातों में भी अपने क्षुद्र अहंकार के लिए संरक्षण खोज लेता है । तो लालूदाई ने क्या कहा, सुनते हैं !
लालूदाई ने कहा, ठीक समय पर, ठीक ऋतु में बोलूंगा । ज्ञानी हर कभी और हर किसी को उपदेश नहीं करता। प्रथम तो सुनने वाले में पात्रता चाहिए। अमृत हर पात्र में नहीं ढाला जाता है।
सुने होंगे ये शब्द, शायद बुद्ध से सुने होंगे, या और ज्ञानियों से सुने होंगे। खूब बढ़िया तरकीब निकाली। उसने कहा कि तुम पहले पात्र तो बनो। सुनने आ गए! जो तुम्हें सुनाते हैं वे अज्ञानी हैं। क्योंकि ज्ञानी तो पहले पात्र देखेगा। अमृत को ढालने के लिए पात्र तो चाहिए। यह मिट्टी का ले आए पात्र ! इसमें ढालूंगा मैं अमृत ! स्वर्णपात्र तैयार करो। खूब तरकीब निकाली ! असल में वह व्याख्यान तैयार कर रहे थे। मगर तब तक लोगों को समझाए रखना था, लोगों को चुप रखना था। तो उन्होंने कैसे बड़े सूत्रों का सहारा लिया !
फिर तो वह यह भी कहने लगे कि ज्ञानी मौन रहता है।
बुद्ध तो रोज बोल रहे थे, सुबह - सांझ बोल रहे थे ! यह भी बदला है। यह भी वह प्रकारांतर से कह रहा है कि बुद्ध भी बुद्ध हो नहीं सकते ।
ज्ञानी तो चुप रहते हैं! अरे, तुमने सुना नहीं, शास्त्रों में साफ-साफ लिखा है, उपनिषद कहते हैं कि परमज्ञानी बोलते नहीं ।
अब यह बड़े मजे की बात है ! अगर उपनिषद परमज्ञानियों के वचन हैं, तो परमज्ञानी बोले। नहीं तो उपनिषद लिखते कैसे? अगर परमज्ञानी बोलते नहीं हैं, तो उपनिषद जिन्होंने लिखे वे परमज्ञानी नहीं थे । साक्रेटीज कहता है कि बोलता नहीं
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