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________________ एस धम्मो सनंतनो नहीं लग रहा था। वहां तो और लोग आते गए और ज्ञान को उपलब्ध होते गए और देवदत्त पीछे पड़ता गया, कतार में दूर होने लगा। उसको चोट भारी लगी। वह भिक्षुओं को लेकर, गिरोह को लेकर अलग हो गया । फिर उसने बुद्ध को मारने के बड़े उपाय किए। बुद्ध के ऊपर पागल हाथी छोड़ा। बुद्ध ध्यान करते थे तो एक चट्टान उनके ऊपर सरकाकर गिरायी। जब चट्टान बुद्ध के पास से सरकती हुई गयी — इंच-इंच बचे, बाल-बाल बचे - तो किसी ने पूछा कि संयोग की बात कि आप बच गए। बुद्ध ने कहा, संयोग की बात नहीं, चट्टान कोई मेरी चचेरा भाई तो नहीं ! चट्टान को मुझसे क्या लेना-देना है! जब पागल हाथी बुद्ध पर छोड़ा देवदत्त ने और पागल हाथी आकर उनके चरणों में झुक गया बजाय उनको मार डालने के, रौंद डालने के, तब भी किसी ने कहा कि अपूर्व चमत्कार ! बुद्ध ने कहा, कुछ भी चमत्कार नहीं, पागल हाथी कोई मेरा शिष्य तो नहीं ! मुझसे बदला लेने का कोई कारण तो नहीं। . बड़ी गहरी मनोविज्ञान की बात है, खयाल में रखना - जिसके प्रति तुम श्रद्धा करते हो, उससे तुम बदला लेने की आकांक्षा रखोगे, खोज करोगे । तो लालूदाई को बहुत बुरा लगा। वह तो मौका मिलने पर प्रकारांतर से, परोक्ष रूप से भगवान की भी आलोचना करता था । कहता- -- आज भगवान ने ठीक नहीं कहा; भगवान को ऐसा नहीं कहना था; भगवान होकर ऐसा नहीं कहना चाहिए था; आदि-आदि। तुम्हें ऐसे संन्यासी भी यहां मिल जाएंगे, गैर-संन्यासी भी यहां मिल जाएंगे, जो ठीक यही कहते हैं । यह कहानी फिर दोहर रही है। यह कहानी सदा दोहरती रही है। इस संसार में नया कुछ होता नहीं। इस संसार में करीब-करीब जो हो चुका है, वही फिर-फिर होता है। यह संसार बड़ी पुनरुक्ति है। तुम्हें कहते हुए लोग मिल जाएंगे कि भगवान ने ऐसा कहा, नहीं कहना था, यह गलत बात कह दी, यह उचित नहीं था कहना, इस बात में राजनीति की झलक आ गयी, यह आलोचना क्यों की किसी की, यह किसी का खंडन क्यों किया ? एक जैन मुझसे आकर कहे कि और सब तो ठीक है, आप साईंबाबा की आलोचना न करें। क्योंकि भगवान होकर...! तो मैंने उनसे पूछा, तुमने महावीर के वचन पढ़े ? उन्होंने कहा, निश्चित पढ़े। फिर तुमने गोशालक की महावीर के द्वारा की गयी आलोचना पढ़ी ? तब वह जरा हैरान हुए। मैंने उनसे पूछा, तुमने बौद्धों के शास्त्र पढ़े ? बुद्ध के द्वारा की गयी आलोचनाएं पढ़ीं? वेलट्ठी, संजय, प्रकुद्ध, इनकी आलोचना पढ़ी बुद्ध के द्वारा की गयी? मैं अगर साईंबाबा के विरोध में कुछ कहा हूं, तो साईंबाबा का विरोध नहीं है, सिर्फ उनको जगाना जरूरी है जो गलत राह पर जा सकते हैं। जो इस तरह की उलझनों में पड़ सकते हैं, उन्हें सचेत करना जरूरी है। 270
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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