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________________ सत्य सहज आविर्भाव है है, तो तुम ऐसा मौका चूकोगे नहीं, तुम झपटकर ले लोगे। तुमने एक बात खयाल की, सारी दुनिया में, सारे समाजों ने, सारी सभ्यताओं ने सदा से बच्चों को यह सिखलाया-अपने मां-बाप का आदर करो। इसकी शिक्षा इतनी पुरानी है, इसका संस्कार इतना गहरा है, लेकिन फिर भी तुम देखते हो, कौन बच्चा अपने मां-बाप का आदर करता है! शायद इसीलिए सभी सभ्यताओं ने तय किया कि बच्चों को सिखाओ कि मां-बाप का आदर करो, अन्यथा बच्चे तो अगर नहीं सिखाए गए तो शायद आदर बिलकुल न करेंगे। सिखाए-सिखाए भी आदर नहीं करते। लाख समझाओ आदर करो, वे नहीं करते। भीतर एक अनादर की धारा बहती रहती है। अहंकार आदर कर नहीं सकता। अहंकार किसी का सम्मान नहीं कर सकता, क्योंकि सम्मान में झुकना होता है। अहंकार सिर्फ अपमान ही कर सकता है। अहंकार सिर्फ गाली ही दे सकता है, प्रशंसा नहीं कर सकता। तो लालूदाई झुका, ऊपर-ऊपर झुका था, भीतर-भीतर बदले की तलाश में था। आखिर कैसे क्षमा करो उस आदमी को जिसने तुम्हें मजबूर कर दिया पैरों में झुकने को, कैसे क्षमा करो उस आदमी को! बहुत कठिन हो जाता है क्षमा करना। ___मैं इधर रोज अनुभव करता हूं। लोग आकर पैर में झुकते हैं, मैं जानता हूं-एक और झंझट बढ़ी। क्योंकि अब यह आदमी बदला लेगा, यह मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा। यह पैर में झुक तो गया, लेकिन अब यह बदला किससे लेगा इस बात का? यह घड़ी इसके जीवन में आयी मेरे कारण, तो मुझ ही से बदला लेगा! यह आज नहीं कल मुझे गाली देगा। यह मेरे खिलाफ कुछ खोजेगा। यह कोई न कोई बहाना निकालेगा और बदला लेगा। तुम अगर इतिहास से परिचित हो, तो महावीर का ही एक शिष्य गोशालक महावीर के साथ बदला लिया। वह महावीर का ही शिष्य था। वह महावीर को ही छोड़कर चला गया और महावीर के खिलाफ जितना काम उसने किया, किसी और आदमी ने नहीं किया। - महावीर का एक दूसरा विरोधी उनका ही दामाद था। वह भी शिष्य हुआ था, वह भी विरोध में चला गया, महावीर के पांच सौ शिष्यों को अपने साथ लेकर निकल गया। अब हमारे देश में तो ऐसा है कि दामाद का पैर छते हैं। तो जब शादी हुई होगी, तो महावीर ने उसके पैर छुए होंगे। और फिर जब महावीर संन्यस्त हो गए, ज्ञान को उपलब्ध हुए, और दामाद भी संन्यस्त हुआ, तो उसे महावीर के पैर छूने पड़े। वह बदला लिया, वह क्षमा नहीं कर सका। उसने महावीर के संघ में पहला उपद्रव खड़ा किया, पहली राजनीति खड़ी की। बुद्ध का चचेरा भाई देवदत्त बुद्ध से दीक्षा लिया, संन्यस्त हुआ। लेकिन यह देखकर उसे बड़ी पीड़ा होने लगी क्योंकि वह चचेरा भाई था, तो वह सोचता था, बुद्ध के बाद नंबर दो कम से कम मेरा होना चाहिए, लेकिन उसका तो कोई नंबर ही 269
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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