________________
एस धम्मो सनंतनो
इस चेष्टा में लग जाएंगे। ___ यह सदा हुआ। जब भी बुद्ध ने घोषणा की, महावीर ने घोषणा की, जीसस ने घोषणा की, बड़ी राजनीति पैदा हो गयी। इसलिए मैंने तय किया है कि घोषणा करूंगा ही नहीं। जिनको हो जाएगा, वे जानते हैं। जिनको हो जाएगा, मैं जानता हूं। बात मेरे
और उनके बीच हो गयी, समाप्त हो गयी। किसी और को पता चलने की कोई जरूरत नहीं, नहीं तो लालूदाई पैदा होंगे। और उनसे कुछ सार नहीं है। घोषणा से कुछ बढ़ता नहीं है, जिसको मिल गया है मिल गया, घोषणा से क्या बढ़ता है!
घोषणा फिर बुद्ध ने क्यों की? करने का कारण था। अगर लोग भले हों तो करने में लाभ है। शायद जितने लोग आज विकृत हैं उतने विकृत नहीं थे, इसलिए की। शायद सौ आदमी सुनते तो एकाध लालबुझक्कड़ हो जाता था, निन्यानबे को तो हिम्मत बढ़ती थी। निन्यानबे को तो लगता था, अगर इसको हो गया तो हमें भी हो सकता है, अब हम लगें जोर से। अगर सारिपुत्र को हो गया, तो हमें क्यों न होगा! निन्यानबे को तो इससे प्रेरणा मिलती थी, इसलिए घोषणा की। निन्यानबे को तो बल मिलता था, आश्वासन बढ़ता था, श्रद्धा बढ़ती थी कि हो सकता है।
और बुद्ध की बिना घोषणा के निन्यानबे को पता नहीं चल सकता था। बुद्ध को पता चलेगा, जो जाग गया उसको पता चलेगा कि किसको हो गया। लेकिन शेष जो सोए हुए हैं, उन्हें कैसे पता चलेगा? उन्हें तो कोई जागा हुआ घोषणा करेगा तभी पता चलेगा।
तो बुद्ध ने, महावीर ने घोषणा की, वह भी कारण से की। सौ में निन्यानबे लोगों को लाभ होता था, एकाध को नुकसान होता था। एकाध कोई लालूदाई झंझट में पड़ जाता था। मगर एक के लिए निन्यानबे का नुकसान नहीं किया जा सकता। ____ आज की हालत बिलकुल उलटी है-आज एकाध को लाभ होगा, निन्यानबे लालूदाई हैं। लाभ तो एकाध को होगा। एकाध को इस बात से श्रद्धा बढ़ेगी, निन्यानबे के भीतर तो ईर्ष्या की आग जलेगी। इसलिए मुझसे मत पूछना आकर कि किसको ध्यान की उपलब्धि हो गयी या नहीं, मैं कहने वाला नहीं हूं। आज की हालत
और भी खराब है। और तुम यह मत सोचना कि लालूदाई यहां नहीं हैं। बड़ी संख्या में हैं। उनसे बचना ही मुश्किल है, उनकी संख्या रोज बढ़ती ही गयी दुनिया में।
तो लालूदाई ऐसे तो चरणों में झुका था, लेकिन सच में नहीं झुका था। और जो थोड़ा-बहुत झुका था, उसका बदला लेता था। ___ तुम समझो। जिसको तुम प्रेम करते हो, उसी को तुम घृणा करते हो। क्योंकि तुम्हारा प्रेम पूरा नहीं है। तुमने कभी इस बात को गौर से देखा! जिसको तुम प्रेम करते हो, उसी को घृणा करते हो। और जिसको तुम श्रद्धा करते हो, उसी पर तुम्हारी भीतर-भीतर अश्रद्धा और संदेह भी चलते रहते हैं। तुम प्रतीक्षा में रहते हो, कब मौका मिल जाए कि इस श्रद्धा को फेंक दें उठाकर। सिद्ध हो जाए कि अश्रद्धा सही
268