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सत्य सहज आविर्भाव है
बुद्धपुरुष तो नदी की भांति हैं। तुम अगर प्यासे हो सत्य के, तो झुको। नहीं कि तुम्हारे झुकने से बुद्धपुरुषों को कुछ मिलता है। तुम्हारे झुकने से क्या मिलेगा, तुम्हारे पास ही कुछ नहीं है, तुमसे मिलना क्या है! तुम यह मत सोचना कि तुमने कोई आभार किया किसी बुद्धपुरुष के चरणों में झुककर; नहीं, उसने तुम्हें झुकने दिया, उसने ही आभार किया। क्योंकि झुककर तुम्हें ही मिलेगा। झुककर तुम कुछ खोने को नहीं हो-खोने को तुम्हारे पास कुछ है भी नहीं।
मगर बड़े मजे की बात है, जिन लोगों के पास खोने को कुछ नहीं है, बिलकुल नहीं है, वे भी झुकने में बड़े अकड़े खड़े रहते हैं। लेने में, सीखने में बड़ी चोट मालूम पड़ती है, दंभ को बड़ी पीड़ा मालूम पड़ती है।
तो यह लालूदाई-यह लालबुझक्कड़-बुद्ध के चरणों में झुक गया होगा, मगर झुका नहीं था। और जब तुम अधूरे मन से किसी के चरणों में झुक जाते हो, तो तुम इधर-उधर बदला लेते हो। बदला लेना ही पड़ेगा, वह मनोवैज्ञानिक है। अगर तुम्हारी श्रद्धा अपने गुरु में अधूरी है, थोथी है, छिछली है, उथली है, तो तुम बदला लोगे। तुम किसी बहाने से गुरु का अपमान करने का उपाय खोजोगे, गुरु की निंदा करोगे, आलोचना करोगे-कोई रास्ता तुम खोज लोगे। अगर सीधा रास्ता खोजने में डरोगे तो प्रकारांतर से। ___अब सारिपुत्र और मौदगल्लायन की आलोचना प्रकारांतर से बुद्ध की ही आलोचना है। क्योंकि बुद्ध ने घोषणा की है कि ये दोनों समाधि को उपलब्ध हो गए। यह बुद्ध की घोषणा है कि इन दोनों ने पा लिया, अब ये लौटेंगे नहीं, ये उस सीमा के पार हो गए जहां से आदमी लौटता है। इनका पुनरागमन समाप्त हो गया है। ये अनागामी हो गए। अब नहीं आएंगे। ये फल आखिरी हैं, इनकी सगंध आखिरी है। जिसे पीनी हो पी ले, जिसे लेनी हो ले ले। ये एक बार उड़ गए तो ये पक्षी फिर दुबारा इस संसार में लौटने को नहीं हैं। इस संसार के वृक्ष पर अब ये दुबारा डेरा न बनाएंगे, ऐसी घोषणा भगवान ने कर दी है। . शायद इस घोषणा के कारण ही लालूदाई को और भी पीड़ा हो रही होगी। कि मेरे रहते और कोई दूसरा अनागामी हो गया!
मेरे पास लोग आते हैं, मेरे पास संन्यासी आते हैं, वे कहते हैं, जिन लोगों को आपके पास ध्यान उपलब्ध हो गया है, आप उनके नाम की घोषणा क्यों नहीं करते? मैं कहता हूं, इसीलिए नहीं करता हूं, क्योंकि बड़ी जलन होगी, बड़ी ईर्ष्या पैदा होगी। अगर मैं एक के नाम की घोषणा करूंगा कि यह ध्यान को उपलब्ध हो गया, तो बाकी सब उसके दुश्मन हो जाएंगे, और बड़ी राजनीति पैदा होगी, और बड़ी खींचातान मच जाएगी, वह नाहक कष्ट में पड़ जाएगा। ध्यान की घोषणा उसे बहुत उपद्रव में डाल देगी। और दूसरे, जो ध्यान की चेष्टा में लगे थे, वे तो चेष्टा छोड़ देंगे, वे किसी भांति यह सिद्ध हो जाए कि इस आदमी को ध्यान नहीं मिला है,
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