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________________ तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है से प्रगट कर देती हैं-कुछ दुख हुआ, रो लिया। इसलिए स्त्रियां हल्की हैं, पुरुष बहुत भारी हैं। यह तुम जानकर चकित होओगे कि दोगुने पुरुष पागल होते हैं दुनिया में और दोगुने पुरुष आत्महत्या करते हैं दुनिया में। और अगर इसमें हम उन सब पुरुषों को भी जोड़ लें जो युद्धों में जाकर कटते हैं और काटते हैं, तब तो संख्या बहुत हो जाएगी, क्योंकि वे भी पागल हैं। और हर दस साल के बाद कोई बड़ा महायुद्ध चाहिए, ताकि पुरुषों में से पागल छंट जाएं। क्या कारण होगा? पुरुष रोने की कला भूल गया है। पुरुष का अहंकार-मर्द कैसे रो सकता है! छोटा बच्चा रोने लगता है तो तुम कहते हो, अरे, मर्द बच्चे हो, रोते हो! लड़की बन रहे हो, लड़कियाना काम कर रहे हो! रोओ मत। छोटे-छोटे लड़कों तक को नहीं रोने देते। धीरे-धीरे रोने की कला भूल जाती है। और रोने की कला बड़ी है। वह मन को सहज हल्का करने की प्राकृतिक विधि है। इसलिए स्त्रियां ज्यादा स्वस्थ हैं-मानसिक रूप से। स्त्रियां पांच-सात साल ज्यादा जीती हैं पुरुषों से, उनकी औसत उम्र ज्यादा है। स्त्रियों की सहनशीलता ज्यादा है। ___तुम जरा सोच लो, किसी पुरुष को अगर नौ महीना बच्चा पेट में रखना पड़े, तो दुनिया में आदमी पैदा होना ही बंद हो गए होते, कभी के बंद हो गए होते। या फिर पुरुष को बच्चे को पालना पड़े, जरा सोचो! तो रोज अदालतों में मुकदमे होते कि बाप ने बेटे की गर्दन दबा दी। रात में न सोने दे बेटा, कब चीखे, कब पुकारे, कब रोए! एकाध दिन तुम जरा घर में अपने बच्चे की देखभाल करके सोचना तब तुम्हें पता चलेगा, कि पागल कर देगा वह तुम्हें। स्त्री की क्षमता बड़ी है, सहनशीलता बड़ी है। और उस सबके पीछे मनोवैज्ञानिक कहते हैं, कारण है क्योंकि स्त्री अपने दुख को छिपाती नहीं, प्रगट हो जाने देती है। इसलिए दुख बह जाता है। पुरुष रोकता है। तुमको न मालूम किसने यह पागलपन समझा दिया है कि रोना मत, क्योंकि तुम पुरुष हो! प्रकृति ने तो दोनों की आंखों में बराबर आंसू की ग्रंथियां बनायी हैं, उसमें जरा भी भेद नहीं है। पुरुष की आंख में उतनी ही आंसू की क्षमता है जितनी स्त्री की आंख में। इसलिए प्रकृति ने तो भेद नहीं किया है। प्रकृति ने तो चाहा है कि तुम भी कभी-कभी रोना। लेकिन आदमी की सभ्यता ने भेद कर लिया है। आदमी को खूब अकड़ दे दी है, पुरुष को, कि नहीं, यह सब स्त्रियों का काम है, यह काम तुम करना ही मत। स्त्री रो लेती है, हल्की हो जाती है, ज्वार निकल जाता है, ज्वर निकल जाता है। इसलिए स्त्री में एक कोमलता है, एक सौंदर्य है। पुरुष में एक कठोरता है। यह कठोरता कम हो सकती है, अगर तुम्हारी आंखें थोड़ा आंसू बहाने की कला सीख लें। तो मैं तो तुमसे कहूंगा, अगर छिपाने और प्रगट करने में ही चुनाव करना हो, तो प्रगट करना। लेकिन चुनाव तीन के बीच है: छिपाना, प्रगट करना, जागकर 255
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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