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एस धम्मो सनंतनो
दुख है, दुखमात्र है, दुख और जीवन पर्यायवाची हैं, जिस दिन ऐसा साक्षात्कार हो जाएगा, उसी दिन तुम जगोगे-उस दिन जगना ही पड़ेगा।
बुद्ध के पास एक आदमी आया और उसने कहा, आप कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे कि जीवन दुख है। बुद्ध ने कहा, रुक! मेरे कहने से जीवन दुख नहीं हो सकता। मेरे कहे को तू मान ले तो भी जीवन दुख नहीं हो सकता। तू कहता है, आप कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। तेरे कहने ही से जाहिर है कि तू राजी नहीं है मेरी बात से। नहीं, उस आदमी ने कहा, जब आप जैसे पुरुष कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। __ यह सवाल बुद्ध के कहने का नहीं है, यह सवाल तुम्हारे देखने का है। तो बुद्ध ने कहा, ठीक, अगर तुझे लगता है कि हम जो कहते हैं ठीक ही कहते हैं, तो अब छोड़, दुख को कब तक पकड़े रहेगा? उसने कहा, अभी नहीं; आऊंगा, जरूर आऊंगा, आना ही है आपके मार्ग पर, अंततः तो सभी को आना है, लेकिन अभी नहीं। बुद्ध ने कहा, अगर तेरे घर में आग लगी हो और तुझे दिखायी पड़ता हो कि लपटें उठने लगी हैं और घर जलने लगा, तो तू उसी वक्त दौड़कर बाहर निकल जाएगा कि सोचेगा कि जाऊंगा, जरूर जाना तो है ही; सभी भाग रहे हैं, मैं भी भागूंगा, मगर अभी नहीं? उस आदमी ने कहा, आप भी क्या बातें कर रहे हैं! घर में आग लगी हो तो सोचने की फुरसत कहां, आदमी निकल जाता है बाहर। बुद्ध ने पूछा, तू किसी से पूछेगा, कहां से निकलूं? दरवाजे से, खिड़की से, पीछे के दरवाजे, आगे के दरवाजे से, कि कूद जाऊं छत से, कि छज्जे से, पूछेगा किसी से? वह कहने लगा, आप भी कैसी बातें कर रहे हैं, घर में आग लगी हो तो कोई पूछता है? जहां से मिल जाए द्वार वहां से आदमी निकल जाता है।
बुद्ध ने कहा, ऐसा ही जिस दिन तुझे जीवन का सत्य दिखायी पड़ेगा, तू एक क्षण भी टाल न सकेगा। निकल जाएगा। रुका ही नहीं जा सकता! ___ जिस दिन बुद्ध ने अपना महल छोड़ा, जो सारथी उन्हें ले गया गांव के बाहर छोड़ने, वह बूढ़ा सारथी था, बुद्ध का पुराना सेवक था, बचपन से बुद्ध को देखा था, बुद्ध बेटे की तरह थे उस बूढ़े के। जब बुद्ध वहां उससे कहे कि तू अब वापस लौट जा रथ को लेकर, यह मेरे गहने भी तू ले जा, तेरी भेंट, तुझे पुरस्कार; ये मेरे कपड़े भी तू ले ले, क्योंकि अब इनकी मुझे कोई जरूरत न होगी; और जब उन्होंने अपने बाल काटने शुरू किए तो उसने कहा, आप यह क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा, ये बाल भी तू ले जा, क्योंकि अब इनकी क्या जरूरत होगी-उनके बड़े सुंदर बाल थे—अब मैं फकीर हो रहा हूं। वह बूढ़ा समझाने लगा कि बेटा, रुक, आखिर मैं भी तेरे पिता की उम्र का हूं और मैंने तुझे बचपन से बड़ा किया है, यह तू क्या कर रहा है? ऐसे सुंदर राजमहल को, ऐसी सुंदर पत्नी को, ऐसे सुंदर अभी-अभी पैदा हुए बेटे को छोड़कर तू कहां जा रहा है, तू होश में है? एक बार लौटकर तो देख!
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