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तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है
लेकिन जाते-जाते इतना बता दो, इस पात्र का राज क्या है?
उस फकीर ने कहा, समझे नहीं? यह पात्र साधारण पात्र नहीं है। यह आदमी के मन से बनाया गया है। यह आदमी के हृदय से निर्मित है। यह आदमी की तृष्णा से बनाया गया है। यह दुष्पूर है। इसे तुम भरते जाओ, यह खाली रहेगा। ___ हंसना मत, क्योंकि कहानी बड़ी वास्तविक नहीं मालूम पड़ती, कहानी बिलकुल झूठी मालूम पड़ती है। मगर मैं तुमसे कहता हूं, सच है। और तुम्हारी कहानी है। तुम भी अपने भीतर के पात्र में कितना भरते चले गए हो, भरा? पहले सोचा दस हजार रुपए होंगे. वह हो गए एक दिन और तुमने पाया कुछ नहीं भरा। फिर सोचा लाख हो जाएं, वह भी हो गए एक दिन, फिर भी तुमने पाया पात्र नहीं भरा। दस लाख की सोचते थे, वह भी हो गए एक दिन...।।
एंड्रू कारनेगी अमरीका का बड़ा अरबपति मरा, दस अरब रुपए छोड़कर मरा, लेकिन असंतुष्ट मरा। दस अरब! आदमी को तृप्त हो जाना चाहिए, अब और क्या चाहिए? लेकिन मरते वक्त किसी ने उससे पूछा कि कारनेगी, तुम तो संतुष्ट मर रहे होओगे, क्योंकि तुमने तो इतनी अपार राशि इकट्ठी की-और कारनेगी गरीब घर से आया था, बाप की तरफ से एक पैसा नहीं मिला था, खुद के ही बल से दस अरब रुपए छोड़कर गया कारनेगी ने आंखें खोली और कहा, क्या बात कर रहे हो, मैं असंतुष्ट मर रहा हूं, क्योंकि मेरी योजना सौ अरब रुपए इकट्ठे करने की थी। दस अरब, क्या हल होता है! नब्बे अरब से हारकर मर रहा हूं।
कारनेगी भी हारा हुआ मरता है और सिकंदर भी हारा हुआ मरता है। और सब हारे हुए मरते हैं। यह कहानी बिलकुल सच है। यह कहानी बिलकुल झूठी मालूम पड़ती है और इससे सच कहानी खोजनी मुश्किल है।
यह तुम अपने भीतर खोजना तो तुम पाओगे। सोचते थे, यह स्त्री मिल जाए, यह पुरुष मिल जाए, सब तृप्ति हो जाएगी। बस, फिर तो एक स्वर्ग बसा लेंगे। फिर तो इस छोटे से झोपड़े में ही स्वर्ग बस जाएगा। वह स्त्री मिल गयी। अब फांसी लगी है और कुछ भी नहीं हो रहा है। सोचे थे एक बच्चा पैदा हो जाए, एक बेटा होगा तो घर में किलकारी होगी, हंसी-खुशी होगी, फूल झरेंगे। बेटा हो गया, अब सिर ठोंक रहे हैं। बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल। अब यह कमाल पैदा हो गए! अब इनके साथ झंझट चल रही है। __ तुमने जो भी चाहा, वह अगर न हुआ, तब तो शायद भ्रम बना रहे कि हो जाता तो सुख मिलता, अगर हो गया तो भ्रम टूट गया। जो स्त्री तुम्हें नहीं मिली, वह अब भी सुंदर है; और जो तुम्हें मिल गयी, उसका सारा सौंदर्य तिरोहित हो गया। धन्यभागी हैं वे प्रेमी जिनको उनकी प्रेयसी मिलती नहीं। इसलिए मजनू बड़े मजे में है। अभागे हैं वे प्रेमी जिनको उनकी प्रेयसी मिल जाती है। मिली नहीं कि सब खतम हुआ नहीं। जो तुमने चाहा, मिलते ही व्यर्थ हो जाता है, क्योंकि कुछ भरता नहीं,
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