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एस धम्मो सनंतनो
यह छूट गयी तो फिर हम चलेंगे कैसे, उठेंगे कैसे? श्वास कैसे लेंगे, बोलेंगे कैसे? फिर तो मुश्किल हो जाएगी। ___इससे हम डरते हैं। इससे हम समझाए रखते हैं। हम कहते हैं कि नहीं, अभी तक तो नहीं हुआ सच है, मगर कल होगा। कल के सहारे जिंदगी का तथ्य छिपा रहता है। मरने तक कोई सुख नहीं मिलता। बहुत बार लगता है, अब मिला, अब मिला और चूक-चूक जाता है। बहुत बार लगता है, बस अब आ गए करीब, मंजिल बिलकुल करीब है, यह पड़ा पैर, फिर-फिर चूक जाता है। मंजिल सदां आगे-आगे बनी रहती है, मगर मिलती कभी भी नहीं।
क्षितिज की भांति है जीवन का सुख। दिखता है-वह रहा, थोड़ी दूर और चल लें, दस मील होगा ज्यादा से ज्यादा, पहुंच जाएंगे, तुम जितने बढ़ते, उतना ही क्षितिज पीछे हट जाता। क्षितिज कहीं है थोड़े ही। जमीन और आकाश कहीं मिलते थोड़े ही। जमीन तो गोल है। मिलतें मालूम होते हैं। मन और तृप्ति कहीं नहीं मिलते। मन का स्वभाव अतृप्ति है। तृष्णा और तृष्णा की तृप्ति का कभी कोई मिलन नहीं होता। तृष्णा में ही अतृप्ति है। तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है।
बुद्ध ने कहा है, तृष्णा दुष्पूर है, उसे भरा नहीं जा सकता।
एक फकीर ने एक सम्राट के द्वार पर भीख मांगी। संयोग की बात, सम्राट भी द्वार पर खड़ा था। उसने फकीर को कहा, क्या चाहता है ? फकीर ने कहा, और कुछ नहीं चाहता, यह मेरा भिक्षापात्र है, इसे भर दो। सम्राट ने पूछा, काहे से भरना चाहता है-मजाक में रहा होगा-किस चीज से भर दूं? उस फकीर ने कहा, चीज कोई भी हो, मगर पूरा भरा हुआ पात्र लेकर जाऊंगा। अगर सम्राट हो और होने का कुछ दर्प है, चाहे मिट्टी से भर दो, मगर पूरा भर देना। खाली लेकर न जाऊंगा। छोटा सा पात्र लिए है। सम्राट हंसा, उसने अपने वजीर को कहा कि जाओ, हीरे-जवाहरातों से भर दो इसका पात्र, यह भी याद रखेगा किसी सम्राट से भीख मांगी थी!
वह फकीर खड़ा हंसता रहा। उसकी हंसी थोड़ी चोट भी करने लगी। उसके चेहरे पर बड़ा व्यंग्य था। और जब वजीर लाए, हीरे-जवाहरातों से उसका पात्र भरा, तब सम्राट को समझ में आया कि झंझट हो गयी। वे हीरे-जवाहरात उसके पात्र में गिरे और खो गए, उसका पात्र खाली का खाली रहा।
एक बड़ी मीठी सूफी कथा है यह।
सम्राट तो पागल हो गया, उसने कहा कि चाहे सब लुट जाए, मगर पात्र भरना ही है। भीड़ लग गयी, सारी राजधानी इकट्ठी हो गयी, भागे लोग चले आ रहे हैं, गांवभर में खबर फैल गयी कि एक फकीर ने चुनौती दी है और सम्राट ने चुनौती स्वीकार कर ली है और पात्र भरता नहीं। हीरे-जवाहरात डाले गए, सोना-चांदी डाले गए, रुपए डाले गए, पैसे डाले गए, जो कुछ था सम्राट ने सब डाल दिया और पात्र खाली का खाली रहा। फिर तो हारा; पैरों पर गिर पड़ा और कहा, मुझे क्षमा करो,
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